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अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं एवं आयारो
जागतिक समस्याओं के चिंतन का स्वरूप एवं उसकी अनिवार्यता
आज विज्ञान ने हमें जाति, धर्म और राष्ट्र की सीमाओं से ऊपर उठकर अन्तराष्ट्रीय समस्याओं पर चिंतन करने के लिये बाध्य कर दिया है क्योंकि इसी पर हमारा अस्तित्व और भविष्य निर्भर करता है । जागतिक चिंतन के लिये । जैसा पाल वेलरी ने कहा है, हमें किसी तंत्र से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता नहीं है । हमें तो उन्मुक्त होकर जिज्ञासा करनी चाहिए एवं साहस पूर्वक यह कहना चाहिये कि प्रश्न परिप्रश्न के परे कुछ नहीं है ।' प्रसिद्ध दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक सी० जी० युग ने भी हमें सावधान करते हुए कहा है कि हम सभी एक ही प्रकार के पूर्वाग्रहों एवं पूर्व मान्यताओं से बन्धे हुए हैं । इसलिये जो वर्तमान के प्रति पूर्ण निष्ठावान है और अतीत के आग्रहों से मुक्त है, वही आधुनिक विश्व की समस्याओं के सम्बन्ध में चिंतन का अवदान दे सकता है । किन्तु ऐसा वही करेगा जिसकी चेतना अधिकाधिक व्यापक एवं गहन होगी । इसी को हेडाइगर-- ( Heidgger ) ने तात्त्विक या वास्तविक चिंतन (Essential thinking) एवं कृष्णामूर्ति (J. समग्र दृष्टि (Total seeing ) कहा है । महानाश के हमारा अस्तित्व ही सम्यक् चिंतन और सम्यक् जीवन पर निर्भर है । कार्ल जास्पर्स (Karl Jasper ) ने ठीक ही कहा है कि आज हमें अणु-वम के प्रलयकारी खतरों की चुनौतियों का सामना करने के लिये उपयुक्त एवं समर्थ एक नवीन राजनीति की अपेक्षा है । " फ्रायड' के विचारों में यह अशांति उद्विग्नता और दुःख मानव ने इसलिये पाया है कि उसने प्राकृतिक शक्तियों पर नियन्त्रण किया और आज वह मानव जाति के उच्छेद के लिये तैयार है । इन्हीं कारणों से आज चाहे धर्म का क्षेत्र हो अथवा राजनीति का, साहित्य का हो या संस्कृति का, जागतिक चिंतन की प्रसव वेदना सुस्पष्ट है । विचार के धरातल पर व्यक्तिगत धर्म (Personal Religion) के बदले
Krishnamurti) ने कगार पर उपस्थित
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१. रेफ्लेवशप्स आन द वर्ल्ड टूडे, (अनु) एफ स्कार्फ, लंदन, १९५१, पृ० ७ २. साइक्लोजीवल रेफ्लेकशन्स, (सम्पा० ) जै० जैको बी, न्यूयार्क, १९५३ ३. द फ्यूचर आफ मेनकाइड, (अनु० ) ई० बी० ४. सिविलाइजेशन्स एण्ड इट्स डिसकटेन्ट, एल०
एशटन, शिकागो, १९६१ फ्रायड, न्यूयार्क, १९६२
पृ० ९२
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