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जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन
जैन परंपरा ने अनासक्ति की बाह्य अभिव्यक्ति अपरिग्रह को भी व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन-धर्म माना है। यही कारण है कि ममत्व-विसर्जन के साथ संपदा-विसर्जन पर भी जैन विचारधारा जोर देता है जबकि वैदिक परंपरा में अनासक्त वृत्ति के लिये परिग्रह त्याग आवश्यक नहीं । जनक पूर्ण अनासक्त होते हुए भी राजकाज संभालते थे लेकिन जैन परंपरा का भरत पूर्ण अनासक्ति के आते ही राजकाज छोड़कर मुनि बन जाता है। बौद्ध परंपरा वैदिक एवं जैन परंपरा के मध्य में है क्योंकि जहां जैन धर्म ने मुनि जीवन परिग्रह के लिये पूर्ण त्याग और गृहस्थों के लिये परिग्रह-परिसीमन की बात की है, वहां बौद्ध धर्म ने केवल भिक्षु के लिये ही स्वर्ण-रजत रूप परिग्रह त्याग की अवधारणा प्रस्तुत की है। गृहस्थों के लिये परिग्रह-परिसीमन का प्रश्न भी नहीं उठाया गया है।
___ असल में अपरिग्रह का प्रश्न केवल वैयक्तिक नहीं, सामाजिक भी है । आज इसकी राष्ट्रीय एवं जागतिक प्रासांगिकता भी है। परिग्रह, संग्रह और विसर्जन सभी सीधे-सीधे समाज जीवन को प्रभावित करते हैं। यदि अर्जन सामाजिक-आर्थिक प्रगति को प्रभावित करता है तो सग्रह आर्थिक समवितरण को। इसी के विपरीत विसर्जन की वृत्ति लोक कल्याण को प्रभावित करती है । अत: परिग्रह-अपरिग्रह के प्रश्न पूरी तरह सामाजिक प्रश्न हैं । अपरिग्रह का सिद्धांत वस्तुतः अनुचित अर्जन, अनैतिक सौंग्रह पर गदा प्रहार है । अर्जन और संग्रह अपने आप में बुरा नहीं लेकिन जब इनका आधार शोषण एवं विषमता हो जाता है तो फिर यह समाज के लिये जहर बन जाता है । अन्यायपूर्ण अर्जन एवं शोषण घारित संग्रह ही आर्थिक संघर्षो को जन्म देता है। क्योंकि एक तरफ अनियंत्रित उपभोग, वैभव का वीभत्स प्रदर्शन और दूसरी ओर करुण अकिंचनता को नृत्य होता है, समाज में संपदा की विषमता बढ़ी है। फिर तो वर्ग-संघर्ष अनिवार्य हो जाता है और सामाजिक सुव्यवस्था एवं शांति दिवास्वप्न हो जाती है। यही कारण है कि मार्क्सवाद उत्पादन के साधन एवं स्वामित्व को ही नहीं उसके उपभोग एवं वितरण को सामाजिक व्यवस्था में आबद्ध करते हैं, किन्तु मार्क्सवाद का समष्टिगत अपरिग्रह राजदंड के आधार पर चलता है इसलिये उसे कई प्रकार के निरंकुश व्यवस्था लादने पड़ते हैं । समाजवाद जब तक उपर से लादा जाता रहेगा उससे संगीनों की साया एवं तानाशाही का संबल चाहिये । वास्तव में समाजवाद केवल राज्य ही नहीं, यह एक समाज-व्यवस्था और उससे भी अधिक एक जीवन-पद्धति है। इसलिये यदि समाजवाद को मंगलकारी बनना है तो फिर व्यक्तिगत जीवन में भी अपरिग्रह का मूल्य स्वीकार करना होगा।
लेकिन मार्क्सवादी समाजवाद का आधार-तत्त्व द्वन्द्वात्मक भौतिक
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