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जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन
नय या दृष्टिकोण का सिद्धांत . हम देखते हैं कि किसी वस्तु के विषय में एक या अनेक कहना इस पर निर्भर करता है कि हम किस दृष्टिकोण से कह रहे हैं। शंकराचार्य भी कहते हैं कि यद्यपि देवदत्त एक ही व्यक्ति है, फिर भी विभिन्न दृष्टिकोणों से वह तप पुरुष, वेद विशारद ब्राह्मण, उदार, बालक, युवा, वृद्ध, पिता, पुत्र, पौत्र, भ्राता, जमाता आदि शब्दों से भी घोषित हो सकता है। यह जैन स्याद्वाद या अस्तिनास्तिवाद से बहुत मिलता है। यहां तक कि उपनिषदों में इसकी ओर संकेत मिलता है कि सत्य हमारे ज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। यह नय भेद या दृष्टिकोण भेद, शंकर वेदांत एवं जैनमत में सामान्य रूप में वर्तमान है। शंकराचार्य स्वयं ब्यावहारिक सत्ता से पारमार्थिक सत्ता को अलग करते हैं। व्यावहारिक दृष्टिकोण व्यवहार जगत् तक ही उपयोगी एवं अनिवार्य है। जैसे एक अनार्य केवल अनार्य की भाषा के माध्यम से ही समझ सकता है, उसी तरह व्यावहारिक जीवों को पारमार्थिक तत्त्वों का ज्ञान व्यावहारिक दृष्टिकोण से ही हो सकता है। किंतु स्पष्टतः अपने में यह अपूर्ण है। अत: हमें ऊपर उठना अपेक्षित है इसलिए कुन्दकुन्द सभी समस्याओं पर इन दोनों दृष्टिकोणों से विचार करते हैं। अस्तु वे अनुभव जगत का विश्लेषण व्यवहारनय से करते हैं तथा पारमार्थिक जगत् का विचार निश्चय नय से करते हैं। अतः अपेक्षाकृत अविकसित विचार का विकसित विचार के लिए अतिक्रमण कदाचित इसकी उपेक्षा नहीं है। इसे अफलांतू', स्पीनोजा', हीगेल', जेम्स' बर्गसां, आदि दार्शनिकों ने पश्चिम में तथा वेद, उपनिषद्,१२
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१. चक्रवर्ती-स० सा० की भूमिका - LLIX २. राधाकृष्णन्--इंडियनफिलासफी, भाग-१ पृ० २९९ ३. स० सा० १/९ ४. चक्रवर्ती--स० सा० की भूमिका CLI ५. मैकटेगर्ट---Hegelian Cosmology-II पृ० २९२ ६.Cp. Perception and knowledge ७. Imagination, Reason. Intuition --Ethics. Vol-II 29 ८. मैकटेगर्ट-ऊपर जैसा-II पृ० २९२ ९. Institutional and Personal Religion. १०. Intellect and Intution. ११. ऋग्वेद-१०/१२९/९.२ १२. मु० १/४५.
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