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________________ युक्त्यनुशासन का सर्वोदय-तीर्थ सर्वोदय की भावना चाहे जितनी प्राचीन और व्यापक क्यों न हो आधुनिक युग में यह शब्द गांधी विचार से जुड़ गया है। मेरी जानकारी में संस्कृत के प्रामाणिक शब्दकोषों में भी इस शब्द का उल्लेख नहीं है । लेकिन जैन दार्शनिक वाङमय के सिंहावलोकन से यह पता चलता है कि आगम युग के बाद ही अनेकांत-स्थापना युग में सिद्ध सारस्वत स्वामी समंतभद्र ने अपनी पुस्तक 'युक्त्यनुशासन' में 'सर्वोदय तीर्थ' का प्रयोग किया है-- सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्प सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ॥६२॥ यहां सर्वोदय-तीर्थ, विचार-तीर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है । यही धर्मतीर्थ भी है। यही जैन तत्त्व ज्ञान का मर्म है । लेकिन सर्वोदय-तीर्थ अनेकांतात्मक शासन के रूप में व्यवहत हुआ है। अनेकांत विचार ही जैन दर्शन, धर्म और संस्कृति का प्राण है । यह भगवान महावीर से भी पुराना है। जैन अनुश्रुति के अनुसार भगवान महावीर ने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ही तत्त्व-चिंतन का प्रचार किया, स्वयं अपना कोई स्वतंत्र और नवीन विचारतंत्र नहीं रखा। यही नहीं, भगवान् पार्श्वनाथ ने अरिष्टनेमि की परम्परा का पालन किया और अरिष्टनेमि ने प्रागैतिहासिक काल के तीर्थंकर नमिनाथ के विचार-तत्त्व को अपनाया। इसी तरह हम प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव तक पहुंच जाते हैं जहां हमें वेद से लेकर उपनिषद् तक सम्पूर्ण दार्शनिक साहित्य का मूल स्रोत मिलता है । अतः जैन चितन एवं तत्त्वज्ञान के पीछे भगवान महावीर से पूर्व भी अनेक पीढ़ियों के परिश्रम एवं साधना का फल जीव-अजीव भेदोपभेद, मोक्ष, कर्मशास्त्र, लोकरचना, परमाणुओं की वर्गणाओं आदि के प्रश्नों पर भगवान महावीर ने प्राचीन जैन परम्पराओं को स्वीकार किया लेकिन जीव-परमाण का संबंध निरूपण आदि के प्रश्नों पर उन्होंने एक नवीन दार्शनिक दृष्टि प्रदान की जो उनका सबसे महत्त्वपूर्ण अवदान है। हमें यह मालूम होना चाहिये कि एक आधारभूत पृष्ठभूमि होती है। शांकर मत में 'अद्वैतदृष्टि', बौद्ध मत में विभज्य दृष्टि, जैन विचार में अनेकांत दृष्टि, हीगेल में द्वन्द्वदृष्टि, मार्क्स की आर्थिक और फ्रायड की काम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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