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जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन बौद्ध तार्किकों में शंकर स्वामी, धर्मकीति' आदि ने भी हेतु को त्रिलक्षण माना है। यह ठीक है कि हेतु के त्रिलक्षण की चर्चा जितनी सूक्ष्मता से बौद्धों ने की, उतनी दूसरों ने नहीं की किन्तु इसकी मान्यता वैशेषिक, आद्य न्याय
और सांख्य में भी रही है। वाचस्पति मिश्र के अनुसार बौद्धों के हेतुत्रिलक्षण की मान्यता संभवतः वसुबन्धु और दिङ्नाग से आरम्भ हुई है। हेतु का चतुर्लक्षण और पंचलक्षण
न्याय परंपरा में हेतु के द्विलक्षण-विलक्षण स्वरूप के अलावे चतुर्लक्षण' को प्रगल्भ रूप से स्वीकार किया गया है। वाचस्पति के अनुसार केवलान्वयी और केवलव्यतिरेकी दो हेतु चतुर्लक्षण हैं तथा एक हेतु अन्वय व्यतिरेकी पंचलक्षण हैं। किन्तु जयन्त भट्ट ने हेतु को पंचलमण ही माना है इसलिए उनके अनुसार केवलान्वयी हेतु है ही नहीं। शंकर मिश्र ने वैशेषिक सूत्रोपस्कार में हेतु में अन्वयव्यतिरेकी में पांच एवं केवलव्यतिरेकी में चार हेतुओं को स्वीकार किया है । जयन्ती ने यह मानकर कि चूंकि गौतम ने पांच हेत्वाभासों का प्रतिपादन किया है अतः हेतु भी पांच होंगे।' वैशेषिक सूत्र एवं भाष्य" तथा बौद्धों में शंकर स्वामी एवं धर्मकीत्ति"
१. शंकर स्वामी, न्याय प्रवेश, बड़ौदा : ओरियंटल इन्स्टीच्यूट, १९२०,
पृ० १ २. धर्मकीति, न्याय बिन्दु, वाराणसी, चो० सं० सि०, द्वितीय-संस्करण,
१९५४, पृ० २२-२३ धर्मकीति, हेतु बिन्दु, वड़ौदा : ओरियंटल संस्कृत सिरीज, १९४९, पृ०
५२ ३. शातरक्षित, तत्त्व संग्रह, बड़ौदा, जनरल लाइब्रेरी, १९२६ पृ० १३६२ ४. न्याय वात्तिक तात्पर्य टीका, वाराणसी : यौ० सं० सि०, १९२५,
१।१।३५ पृ० २८९ ५. उद्योतकर, न्यायवात्तिक, ११११५ पृ० ४६ चतुर्लक्षण पंचलक्षणाय
अनुमानमिति । वाचस्पति मिश्र, न्याय वात्तिक तात्पर्य टीका, ११११५, पृ० १७४ ६. जयन्त भट्ट, न्यायकलिका, सं० गंगानाथ झा, पृ० १४ ७. वैशेषिक सूत्रोपस्कार, वाराणसी, चौखंभा, १०९२३, पृ० ९७ ८. जयन्त भट्ट, न्याय कलिका, पृ० १४ ९. वैशेषिक सूत्र, ३।१।१५ १०. प्रशस्तपाद भाष्य, पृ० १०० ११. न्याय प्रवेश, पृ० ३ १२. प्रमाणवात्तिक, इलाहाबाद, किताब महल, १९४३, १११७
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