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________________ जैन दर्शन : चिन्तन - अनुचिन्तन २२ विकसित हो, उसकी अपनी सीमा तो है ही । चाहे हमारा नेत्र कितनी ही प्रकृष्टता क्यों न प्राप्त कर ले लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम उससे शब्द का अनुभव कर सकें ।' बुद्धि, प्रतिभा आदि से जो भी अतिशयवान् देखे गये हैं वे न्यूनाधिक रूप से अतिशयवान् हैं न कि अतीन्द्रिय पदार्थों को देखने से । ' एक शास्त्र के ज्ञान में बड़े अतिशय देखे जाते हैं लेकिन दूसरे शास्त्र का ज्ञान उन्हें प्राप्त नहीं होता । मीमांसक पूछते हैं कि जो १५ फीट कूद सकता है उसके विषय में १५ मील कूदने की कल्पना कर लें तो यह तर्क की टांग तोड़ना होगा ।' किन्तु मीमांसक यह भूल जाते हैं कि सर्वज्ञता का ज्ञान इन्द्रिय ज्ञान की प्रकर्षता नहीं बल्कि अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति में है । केवल ज्ञान तो अनन्त होता ही है । जैन परम्परा में इस युक्ति का प्रथम प्रतिपादन मल्लवादी " किया, फिर यशोविजय' आदि ने इसका उपयोग किया । (छ) अंश अंशी प्रमाण आचार्य वीरसेन' ने "जयधवला" में सर्वज्ञता की सिद्धि अंश - अंशी न्याय से की है । जिस प्रकार पर्वत के एक अंश को देखने से पूर्ण पर्वत का व्यवहारतः प्रत्यक्ष माना जाता है, उसी तरह मति ज्ञानादि अवयवों को देखकर अवयवी रूप केवल ज्ञान स्वसंवेदन से होता है । आत्मा का स्वाभाविक केवल ज्ञान यहां मतिज्ञानादि रूप में प्रकट होता है । " ६. सर्वज्ञता की संभावना : एक प्रयास (क) विज्ञान के आदर्शों में सर्वज्ञता की संभावना विज्ञान विश्व का सुव्यवस्थित क्रमबद्ध ज्ञान है । इसका उद्देश्य अज्ञान १. तत्त्वसंग्रह - का. ३१६०-६१ । २ . वही, का. ३१६१-६२ । ३. वही, का. ३१६० । ३१६५ । ४. वही, का. ५. वही, का. ३१६८ । ६. वही, का. ३३१८-९ । ७. दर्शन और चिंतन पृ० ४२९ । ८. ज्ञान बिन्दु प्रकरण पृ० १९ । अष्टशती - का. ९. जैन दर्शन पृ० ३०८-९ । जयधवला - आरपत्र ८६६, ३; न्याय - विनिश्चय पृ० ४६५ । अष्ट सहस्री पृ० ५० । १०. तुलना — Our phenomenal knowledge suggests a noumenal as a necessity of thought — राधाकृष्णन् - इंडियन फिलासफी भाग १, पृ० ५०९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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