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ज्ञान की सीमायें और सर्वज्ञता की संभावनायें
(२) यह कहा जाता है कि समस्त संसार में हम एक भी सर्वज्ञ नहीं देखते । किन्तु हमारा अज्ञान हमारा प्रमाण नहीं बन सकता। यह तो वैसा ही हुआ कि हम कहें कि जैमिनि आदि वेदों का मर्म नहीं जानते थे क्योंकि अभी हम उनके जैसा व्यक्ति नहीं देखते ।'
(३) आगम वर्णित साधनों से यदि सर्वज्ञता प्राप्त होती है और फिर सर्वज्ञ के द्वारा आगम कहा जाता है, तो दोनों परस्पराश्रित होने से असिद्ध हैं। इसका उत्तर होगा-'सर्वज्ञ आगम का कारक है। प्रकृति सर्वज्ञ का कारण पूर्व सर्वज्ञ के द्वारा प्रतिपादित आगमार्थ के आचरण से उत्पन्न होता है और पूर्व सर्वज्ञ का ज्ञान तत्पूर्व सर्वज्ञ के द्वारा प्रतिपादित आगमार्थ के आचरण से। इस तरह दोनों का बीजांकुर सम्बन्ध है। पुरुष अपना विकास कर जब सर्वज्ञ हो सकता है तो उसी के गुणों से वचनों में प्रमाणता आयेगी।'
(४) यदि सर्वज्ञ को धर्मी बनाकर भावात्मक हेतु दिया जाए तो असिद्ध हो जाते हैं, यदि अभावात्मक हेतु देते हैं तो विरुद्ध हो जायेंगे और यदि दोनों सर्वज्ञ के धर्म हैं तो अनैकान्तिक हो जायेंगे। वस्तुतः यह शंका ही गलत है। हम सर्वज्ञ को नहीं "कश्चिदात्मा'' को धर्मी बनाते हैं, अतः ये सारे दोष नहीं लगते । उदाहरणार्थ, हम कहते हैं..-"कोई आत्मा सर्वज्ञ होगा । क्योंकि पूर्ण ज्ञान आत्मा का भाव है और उसके प्रतिबन्धक कर्मादिक्षय से हट सकते हैं।
(५) सर्वज्ञ के साधक एवं बाधक दोनों प्रमाण नहीं मिलते, अतः संशय स्वाभाविक है । उपर्युक्त चर्चा के आधार पर यह गलत है। सर्वज्ञ का त्रिकाल एवं त्रिलोक में अभाव कौन बता सकता है ? जो स्वयं सर्वज्ञ है । अतः जो यह कहे कि कोई भी सर्वज्ञ नहीं है, इसका अर्थ है कि कम से कम वह अवश्य सर्वज्ञ है क्योंकि उसने सब को देखा है। ८. सर्वज्ञता सिद्धि के कुछ प्रमाण : जैन ग्रंथों पर आधारित
शास्त्रीय प्रमाणों के अतिरिक्त विभिन्न जैन दार्शनिकों ने सर्वज्ञ-सिद्धि के कुछ अपने-अपने मौलिक प्रमाण उपस्थित किये हैं, हम उन्हीं का विवेचन करेंगे। (क) आत्मा का स्वभाव : अनन्त ज्ञान
जीव स्वाभाविक अवस्था में अनन्त चतुष्टय को प्राप्त रहता है किन्तु ज्ञानावरणीय कर्मों के कारण कर्म-पुद्गल प्रभाव से इसका अनन्त ज्ञान आवृत्त १. वही, पृ० ३१२-३१३; स्याद्वाद सिद्धि पृ० २९।। २. जैन दर्शन पृ० ३१२, स्याद्वाद सिद्धि पृ० ३० । ३. जैन दर्शन पृ० ३१३-३१४, न्यायावतार सूत्र वार्तिक पृ० ५१ । ४. जैन दर्शन पृ० ३१४ ।
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