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जैन विश्वभारती : अहिंसा की प्रतिध्वनि
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परिग्रह एवं विलास के प्रतीक हैं। वहां अहिंसा की जीवन-शैली विकसित करना काफी कठिन है । अहिंसा के विकास के लिये परिग्रह का परिवेश और अहिंसा के लिए परिकर आवश्यक हैं । अपरिग्रहीपरिवेश के लिए प्राकृतिक परिवेश एवं पर्यावरण संतुलन पर अधिक ध्यान रखना होगा । आने वाले समय में उस संकट के साथ जल का भी संकट होने वाला है । जब पेरिस जैसे रंगीन शहर के पास गांधी के शिष्य लांजा - डी - वास्ता एक गांव में आश्रम जीवन चला सकते हैं तो जैन विश्वभारती के लिए यह कठिन नहीं है । सौर ऊर्जा का मरूप्रदेश में बाहुल्य है ही, क्यों नहीं हम सौर ऊर्जा को यहां विकसित कर राष्ट्र को दिशा दें ? इसी तरह बायोगैस, गोबर गैस के भी प्रयोग हो सकते हैं । बड़े-बड़े ऊंचे एवं कबूतरखाने वाले मकानों की अपेक्षा सदा प्रकाश, वायु मिलने वाले, उद्यानों एवं पेड़-पौधों में ढके अरण्य की की गोद में जैन विश्वभारती को देखना कितना सुन्दर होगा जहां पक्षियों के कलरव होते रहेंगे । मानव और मानवेतर का यह संधि-स्थल होगा । आज बड़े बंगलों एवं ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं में जल का अत्यधिक व्यय होता है, क्योंकि फ्लश - पद्धति के परवानों में तथा टब - सिस्टम के गुशलखानों में काफी पानी चाहिये । हमें न केवल आहार में निरामिष होने का आग्रह रखना चाहियें बल्कि स्नानघर एवं शौचालय आदि के निर्माण में भी अंधाधुंध जलखर्च को रोकना चाहिये ।
भवन-निर्माण, जहां तक सम्भव हो एक तल का सादा, प्रकाश एवं वायु के लिए खुला और मजबूती लिए हुए कम से कम खर्च का होना चाहिये जिसमें आस-पास की वस्तुओं एवं कारीगरों का अधिक उपयोग हो । यहां पीने को थोड़े खर्च होने वाले पानी का हर बूंद का पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए उपयोग होना चाहिये । भड़कीले कीमती और शानदार उपकरणों के बदले सादे तरह की चीजें रहें। जहां तक वर्ग में विद्यार्थियों एवं अध्यापकों के बैठने का प्रश्न है, ग्रामोद्योग की बनी चटाई एवं काठ के पाठ डेस्क हो । यही कुलपति से लेकर अन्य प्रशासनिक दफ्तरों में रहे । इससे लाखों रूपये की बचत होगी और फर्नीचर बढ़ाने की प्रतियोगिता पर स्वतः एक बंधन लगेगा। जीवन में सादगी एवं स्वावलम्बी वृत्ति आएगी । दफ्तर के अनिवार्य कार्यों को छोड़ परावलम्बी वृत्ति को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय का स्टाफ किसी का घरेलू नौकर नहीं होगा। जहां तक होगा लोग अपना काम स्वयं करेंगे । छात्रावासों में अपने कक्षों की सफाई छात्र - छात्रा स्वयं करेंगे । भोजनोपरान्त अपने बर्तनों की सफाई भी करने में क्या हर्ज है ? इससे आश्रम जीवन में अहिंसा की प्रतिध्वनि मिल सकेगी ।
दंड विधान तो होगा नहीं । विद्यार्थियों का एक संसद होगा जिससे वे कर्त्तव्य - विभाजन के आधार पर अपने दायित्व संभालेंगे । दास एवं सामंती
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