SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन कीत्ति-स्तम्भ होगा । नैतिक और आध्यात्मिक संस्पर्श के बिना जिस प्रकार आज की राजनीति जहर से भी ज्यादा खतरनाक हो गयी है उसी प्रकार नैतिक और आध्यात्मिक तत्त्व के बिना हमारी शिक्षा बन्ध्या होकर भी व्यभिचारिणी बन गयी है । यही कारण है कि शिक्षा हमारी अनेकानेक सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के बदले स्वयं एक समस्या बन गयी है। शिक्षण संस्थाएं सांस्कृतिक दृष्टि से श्मशान बनते जा रहे हैं। कर्म के बिना ज्ञान या आचार के बिना विचार, व्यर्थ हैं। दुर्भाग्य है कि हमारे देश में धर्म-निरपेक्षता का इतना अजीर्ण हो गया कि हमने धर्म-शिक्षा को शिक्षण-व्यवस्था से ही पूरी तरह अलग कर दिया है। हालांकि संसद ने स्व० डा० प्रकाश की अध्यक्षता में "नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को शिक्षण व्यवस्था में समावेश करने के लिए एक विज्ञ समिति का गठन किया था किंतु उसकी संस्तुतियों की एकांत उपेक्षा हुई। आज विश्वविद्यालय परिसर में व्याप्त असंतोष एवं उछृखलता, मर्यादा का अपक्षय खतरे की घंटी बजा रहा है। इसलिए जिस प्रकार पाणिनी के सूत्रों की रचना शिव के डमरू के निनाद से मानी जाती है उसी प्रकार जैन विश्वभारती की वर्णमाला का निर्माण अनुशास्ता आचार्य तुलसी के नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के आलोक में होगा। मंत्र एवं तन्त्र हर धर्म का अपना एक संदेश होता है । इस्लाम ने भ्रातृत्व, ईसाइयत ने करुणा हिन्दुत्व ने त्याग का मंत्र दिया तो जैन-धर्म और दर्शन का मूलमंत्र अहिंसा की साधना है। किन्तु आचरण में अहिंसा तब तक प्रतिफलित नहीं हो सकती जब तक विचार में अनेकांत और व्यवहार में अपरिग्रह की सिद्धि नहीं हो सकती। इसलिए अनेकांत, अपरिग्रह एवं अहिंसा की त्रिवेणी की साधना ही जैन विश्वभारती का मंत्र होगा। इसी के अनुरूप परस्पर के आधार पर सहमति सर्वानुमति विश्वास और सर्वसम्मति के आधार पर ही निर्णय इसका तंत्र-विधान होगा। आचार संहिता विचार निर्गुण हो सकता है लेकिन आचार तो सगुण ही होगा। न्यूनतम आचार-संहिता के बिना संसार की कोई व्यवस्था टिक नहीं सकती फिर “विश्वभारती' जैसी गरिमामयी संस्था की तो अपनी आचार-संहिता होनी ही चाहिए। यही इसका परिचय-पत्र होगा। इस संस्था के विद्यार्थी हों या अध्यापक या अधिकारी सबों के लिए इसके आदर्शों के अनुरूप किन्तु व्यावहारिकता के आलोक में एक आचार-संहिता होनी चाहिए। सौम्य व्यवहार एवं मृदुल शिष्टाचार, आग्रह मुक्त विचार प्रवर्तन, वैचारिक उदारता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy