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जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन
व्यापक होती गई, तो हम सत्यानाश पर स्वतः पहुंच ही जाएंगे। फिर इस परमाणु-युग में युद्ध या संकुल युद्ध का आयोजन तो क्या चर्चा भी कितनी आत्मघाती एवं अनुत्तरदायित्वपूर्ण है, यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है ! अतः, हमारे सामने अब तो दो ही रास्ते हैं—करना हो तो अणु-अस्त्रशस्त्र से सुसज्जित संकुल युद्ध करें या फिर युद्ध करना ही छोड़ दें। यूरोप के पराक्रमी एवं प्रयोगी मनुष्यों ने तीसरा कोई रास्ता रहने दिया ही नहीं । इसके विपरीत अहिंसा में निरन्तर विकास का अवसर रहेगा। इसीलिए अहिंसा का राष्ट्रव्यापी प्रयोग व्यक्तिगत प्रयोग से अधिक सुलभ होगा; क्योंकि व्यक्तिगत मामले में आवेश, क्रोध और पागलपन की भले ही गुंजाइश है, लेकिन इस अणु-युग में राष्ट्रीय युद्ध में दीवानेपन की गुंजाइश नहीं है। इस दृष्टि से अकेला भी अहिंसक राष्ट्र सर्वथा सुरक्षित रहेगा । जो राष्ट्र दूसरों का शोषण नहीं करेगा, जहां श्रमनिष्ठ स्वावलम्बी समाज होगा, जहां की प्रजा को सामाजिक और आर्थिक न्याय मिलते रहेंगे, जहां विश्व भर के लिए मैत्री रहेगी, संकट के समय दूसरे राष्ट्रों की सेवा की तैयारी रहेगी, यदाकदा संघर्ष में किसी निष्पक्ष राष्ट्र की मध्यस्थता के लिए तत्परता रहेगी और अन्तिम स्थिति में आक्रमण के साथ अखण्ड असहयोग एवं अहिंसात्मक प्रतिकार करने की तैयारी रहेगी--ऐसे राष्ट्र के प्रति दुनिया भर में सहानुभूति का वज्र निर्माण हो जाएगा। इसलिए किसी राष्ट्र के अहिंसावादी बनने पर उसके स्थायित्व के विषय में सन्देह सचमुच कल्पना-शक्ति के अभाव का द्योतक है। हिंसा की वेदी पर जितनी भी आहुतियां चढ़ानी पड़ती हैं और उनके बदले जो लाभ अब तक मानवता को मिला है, वह हमारे मस्तिष्क में हिंसा की सफलता के विषय में सन्देह प्रकट कर देता है। इसके विपरीत यदि उतना ही बलिदान हम अहिंसा के लिए करने को तत्पर हो जाएं, तो हमें कम लाभ होगा—यह चिंतन की दुर्बलता है। लेकिन, हम तो हिंसा के लिए भारी-से-भारी बलिदान को भी कम मानते हैं और अहिंसा के लिए अल्पबलिदान या अबलिदान की कल्पना कर लेते हैं। वास्तव में यह अन्याय है। वीरों की अहिंसा पर अधिष्ठित समाज या राज्य-व्यवस्था में अराजकता एवं वैदेशिक आक्रमण का भय हमारे चिंतन की दुर्बलता है।
७. जनतंत्र एवं अहिंसक प्रतिकार : जनतंत्र के संदर्भ में यह कहा जाता है कि चूंकि यह जन प्रतिनिधियों के द्वारा सारा कारोबार चलाता है, प्रशासन विधायिका के प्रति जिम्मेवार रहता है, व्यक्तिगत अधिकारों एवं न्याय की सुरक्षा के लिए स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका, जनमत की अभिव्यक्ति के लिए आवधिक निर्वाचन, मतगणनादि प्रक्रियाओं का विधान है, जिसमें विचार-प्रचार का पर्याप्त अवसर रहता है, इसलिए वहां अहिंसक प्रतिरोध वस्तुतः निरर्थक है । इस प्रकार के चिन्तकों के मानस में सम्भवतः संवैधानिक
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