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________________ जनतंत्र और अहिंसा १५३ हमेशा असुरक्षित एवं दण्डशक्ति का दास बना रहेगा। यह भी ठीक है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अहिंसा को स्वीकार नहीं करेगा, किन्तु समाज का रक्षण, समाज की व्यवस्था, समाज का सन्तुलन एवं सबसे अधिक तो समाज की शांति अहिंसा पर ही कायम रह सकती है। हिंसा के निर्मूलन के लिए हमें हिंसा की जड़ों को देखना होगा। आर्थिक अन्याय एवं सामाजिक विषमता तथा विभिन्न प्रकार के राजनीतिक दावपेंच एवं प्रपंच वास्तव में प्रकट हिंसा के ही बीज हैं। इसलिए आज तो अपराध के लिए जेलखाने से अधिक सुधार-पाठशाला, दंड-विधान से अधिक मनोविज्ञान को महत्त्व दिया जा रहा है। समाज में व्याप्त अपराध वस्तुतः हमारे अन्तनिहित अन्याय का विस्फोट है, अतः हमें निर्जीव न्याय एवं दंड-विधान से अधिक सामाजिक एवं आर्थिक न्याय को देखना है । फिर भी इतने पर भी यदि अशांति एवं अपराध होते ही हों, तो उनसे जूझने के लिए अहिंसक नागरिक शक्ति का संगठन आवश्यक है। जनतंत्र के लिए शायद सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि जनतंत्र आज तक विश्व-शांति का कवच और कुण्डल नहीं बन सका है । इसके विपरीत हमारा इतिहास इसका साक्षी है कि कितने ही जनतांत्रिक देश मानवता की छाती पर कुत्सित-से-कुत्सित साम्राज्यवाद, गहित-से-गहित पूंजीवाद और बीभत्स-से-बीभत्स शस्त्रवाद लादने के कलंक से बच नहीं सकते हैं । जनतांत्रिक देशों की विदेश नीतियों में भी युद्ध का वही उन्माद है, जो तानाशाही हुकूमतों में है। इसलिए मेरी तो अपनी मान्यता है कि साम्राज्य-विस्तार एवं शोषण के साथ प्रजातंत्र का मेल नहीं है। ___ एक और प्रश्न है-क्या अहिंसा पर अधिष्ठित राज्य-पद्धति अपने को बचा सकेगी? यहां हम इतना ही कह देना चाहेंगे कि इतिहास से आज तक राज्य-पद्धति को स्थायी बनाने के लिए हिंसा के ही सभी प्रयोग किए गए हैं, किन्तु शायद ही केवल हिंसा के बल पर कोई राज्य-पद्धति टिकी हो । जो हिंसात्मक पद्धतियां टिकी हैं या टिक सकी हैं, वे लोकमत की शक्ति का किसी न किसी रूप में सहारा पा कर ही। फिर भी हमारे मानस पर हिंसा की कुछ ऐसी गहरी पकड़ है कि हजारों बार असफल होने के बाद भी उसकी सफलता में हमारी श्रद्धा बनी हुई है। अत: अहिंसा के लिए यह निषेधात्मक प्रमाण हुआ कि हिंसा की कोई पद्धति आज तक टिको नहीं रही हिंसाशक्ति पर राज्यशक्ति का अधिष्ठान एक गंभीर प्रश्न उपस्थित करता है। हिंसा से हिंसा निकलती है। एक राष्ट्र जितनी हिंसा करेगा, दूसरा उससे अधिक करेगा और तीसरा उससे भी अधिक । ऐसा करते-करते हम संकुल युद्ध (Total War) तक पहुंच जाएंगे। यानी हिंसा-नीति यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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