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________________ जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन यह नहीं जानता है कि ये नियम प्रकृति में कहां से आए ? इसी को खोजना अध्यात्म है । ईशावास्य उपनिषद् में ऋषि कहता है "वह है तभी तो संचरित यह प्राण है। जो कर रहा क्रीड़ा प्रकृति की गोद में ।।" विज्ञान यह तो कहता है मस्तिष्क में विद्युत्-तरंगों के माध्यम से हम पढ़ते और समझते हैं लेकिन विज्ञान यह नहीं बता पाता कि उन तरंगों से हम वही पक्तियां क्यों पढ़ते हैं ? विज्ञान सृष्टि का विधायक स्वरूप तो बता देता है लेकिन मानव जीवन का लक्ष्य (ought) क्या हो, यह नहीं कह सकता । इसके लिए तो अध्यात्म की शरण में जाना ही होगा। बट्टैण्ड रसेल ने ठीक ही कहा है कि "हम अपने लक्ष्यों एवं नैतिक आदर्शों के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं दे सकते।" इसलिये अध्यात्म का संयोग आवश्यक है। शुद्ध भौतिकवाद की अंतिम परिणति व्यक्ति और मानव जीवन में व्यर्थता एवं नगण्यता पैदा करना है । उसी प्रकार अंध अध्यात्म दृश्यमान के मिथ्यापन को इतना खींच लेता है कि हम मायावाद में फंस कर काल्पनिक और अर्थहीन होने लगते हैं । “सुख की खोज" मानव-जीवन की सीमाहीन भूख एवं अतृप्त प्यास है । सुख की असीम तृष्णा ही शक्ति की खोज का भी रहस्य है । रामायण, महाभारत आज के विश्व में महाशक्तियों की उद्दाम भोग लिप्सा पर आश्रित नृशंस लीला के ही उदाहरण हैं। आज तो पुनः ६३ हजार वर्षों के बाद हम पुनः महाभारत के युग में आ गए हैं "कर में विज्ञान और दिमाग में है कूटनीति, मारक अणु अस्त्रों का करता निर्माण है। पाकर वरदान अरे, भस्मासुर आज बना, मानव को हिंसा की शक्ति का गुमान है ।" इसीलिए आज विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय मानव-सृष्टि के लिए अपरिहार्य हो गया है । १९६३ में पटना में आयोजित "अध्यात्म और विज्ञान" पर आयोजित परिसंवाद को अपने संदेश में राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था--"विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय के बिना मानवता के विनाश का सच्चा खतरा पहुंच चुका है।" पं० नेहरू ने तो कहा-विश्व का भविष्य विज्ञान की प्रगति पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है। किन्तु अध्यात्म के मार्गदर्शन के बिना मानवता प्रलयंकारी दुर्घटना का शिकार हो जाती है। इसीलिए "अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय के सम्बन्ध में चिंतन और मनन केवल भारत के लिए ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व-मानवता के लिए आवश्यक है"---ऐसा दार्शनिक राष्ट्रपति डा० राधाकृष्णन् ने कहा । श्री अरविन्द आश्रम की माताजी ने वेदना से कहा-"विज्ञान और अध्यात्म को विभाजित मत करो। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का एक ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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