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विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय
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साधना के नाम पर स्वार्थ चलाना आध्यात्मिकता नहीं है । व्यक्तिगत रूप से सिद्धि प्राप्ति भी एक प्रकार का पूंजीवाद ही है । 'मेरा धन', 'मेरी विद्या' "मेरी साधना' या "मेरी मुक्ति' भी व्यक्तिवाद के ही प्रतीक हैं । 'मेरी साधना', या 'मेरी मुक्ति'-- ये सब एक ही कोटि का समाधान है।
भारतीय अध्यात्म की विशिष्ट प्रतिभा को वैज्ञानिक दृष्टि से उजागर करना आवश्यक है। रामानुजाचार्य ने अपने गुरुमंत्र को जग जाहिर करने के लिए खुद नरक भोगा था। ज्ञानदेव, चैतन्य एवं अन्य मध्ययुगीन संत ब्रह्मविद्या को स्त्रियों, शूद्रों, बच्चों और साधारण से साधारण जनता के बीच बांटते रहे। भारतीय अध्यात्म की मुख्य विशेषता है कि 'मन' को मुक्त करें। आज विज्ञान ने सृष्टि के बाहरी हाथ से काम आरम्भ किया है, फिर भी अन्दर की ओर भी वह धीरे-धीरे जाने का प्रयत्न करेगा और उसे अनुभूति एवं प्रयोग की कुछ नयी पद्धतियां खोजनी होंगी। इंद्रियों पर आधारित प्रचलित पद्धतियों एवं ऐन्द्रियिक अनुभूतियों से तब काम नहीं चलेगा । हम इन्द्रियों के द्वारा जो स्पर्श, घ्राण आदि अनुभव करते हैं, फिर भी यही वह तत्त्व नहीं है। तत्त्व द्रव्य-निरपेक्ष (immaterial) नहीं है, परन्तु द्रव्य से भिन्न जरूर है। इस अर्थ में द्रब्य (matter) भी तात्विक (substantial) हो जाती है। इस तरह द्रब्य और चित्त (Matter and Mind) दोनों दो नहीं रह जाते हैं। दोनों पर एक दूसरे का प्रभाव पड़ता है । इसीलिए कौन प्रमुख और कौन गौण आदि सारी चर्चा बिलकुल निम्नस्तरीय हो जाती हैं । बस, कोई एक तत्त्व है, जो चित्त और द्रव्य दोनों से , परे है।
___ अध्यात्म और विज्ञान दोनों मनुष्य की आधारभूत प्रेरणा एवं आकांक्षाओं की अभिव्यक्तियां हैं। “विज्ञान के बिना अध्यात्म पंगु है तो अध्यात्म के बिना विज्ञान अंधा है ।"- ऐसा आइन्स्टीन ने कहा था । यही कारण था कि ज्ञान-विज्ञान पारंगत नारदमुनि को भी सनत्कुमार के यहां अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जाना पड़ा था। नारद की इस निरीहता पर ही शंकराचार्य ने कहा था--"सर्वविज्ञान-साधन-शक्ति-सम्पन्नस्य अपि नारदस्य देवर्षि श्रेयो न बभूव ।" यानी विज्ञान भौतिक सुख-समृद्धि तो दे सकता है लेकिन आत्मिक आनन्द, मानसिक शांति और श्रेय अध्यात्म से ही मिलेगा। यमराज ने भी नचिकेता को प्रेय और श्रेय का विवेक बताया था । कामायनी में प्रसाद जी ने मानव जीवन की इसी विडम्बना को उजागर करते हुए लिखा है
ज्ञान दूर कुछ, क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की ? एक दूसरे से न मिल सके, यह विडम्बना है जीवन की। विज्ञान प्रकृति एवं सृष्टि के नियमों का अनुसंधान तो करता है लेकिन
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