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________________ जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन एक पर ही सोचते हैं। जो भी हो, ज्ञान तो सापेक्ष एवं सीमित है ही। लेकिन ज्ञान की यह सीमा इसके प्रामाण्य एवं प्रकृष्टता, परिधि-चैतन्य एवं इसके अनुमान की सत्यता की अपेक्षा से है। ये सीमायें विगत तीन दशक पूर्व आज की अपेक्षा अत्यन्त संकुचित थीं। संक्षेप में, मानवीय ज्ञान का सत्य के साथ धीरे-धीरे अधिक निकट सम्बन्ध हो रहा है। इसीलिये सिद्धान्न रूप से यह स्वीकार किया जा सकता है कि सभी संभाव्य ज्ञान मानवीय सीमा एवं शक्ति के अन्तर्गत है।' ४. सर्वज्ञत्व का अर्थ (क) व्युत्पत्ति पाणिनि 'सर्वज्ञ' शब्द की व्युत्पत्ति "इगुपध-ज्ञा-प्री-किरः कः'४ सूत्र से है। "वाचस्पत्यम्"५ ने सर्वज्ञता का अर्थ "सर्वं जानाति" से जोड़ते हुए इससे सूचित होने वाले पांच अर्थों का संकेत किया है। मोनाइर एण्ड मोनाइर विलियम्स ने भी प्राचीन साहित्य में सर्वज्ञता सम्बन्धी लगभग तीस अवतरणों को उद्धृत किया है। "शब्द कल्पद्रुम'' में सर्वज्ञता के तीन अर्थ और दिये गये हैं यथा शिवि, बुद्ध और विष्णु । प्रिंसिपल आप्ते कृत "संस्कृत कोष"" का विचार "वाचस्पत्यम्” से ही मिलता है। संस्कृत “सर्वज्ञता" का पाली पर्याय "सव्व राणुता" या "सव्वराणु" है क्योंकि पाली व्याकरण 8. Saswitha, “Principles of Thinking” in Proceedings of International Philosophical Congress, Brussels Vol. II, 1953 p. 59. २. Ladd, G.T. Knowledge, Life & Reality, Yale Univ., 1918, p. 100. ३. S:arles, H.L. “The Revolt Against Epistemology", in Proceedings of International Philosophical Congress, Brussels, 1953, Vol. II, P. 73. (श्री अरविन्द के लाइफ डिवाइन से उद्धत)। ४. अष्टाध्यायी, ३-१-१३५ । ५. तर्क-वाचस्पति तारानाथ भट्टाचार्य कृत, चौखम्बा, वाराणसी, १९६२, __ भाग-६, पृ० ५२५८ । ६. Sanskrita-English Dictionary, Oxford, 1956 p. 1185. ७. राजा सर राधाकान्त देव सम्पादित, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, १९६१, भाग ५, पृ० ३०३ । 5. P.K. Gode & G.C. Karve (Edited), Prasad Prakashana, Poona, 1959, p. 1656. S. (Ed.) Rhys Davids T.W. & Stede William, Pali Text Society, 1921, pp. 139-40. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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