________________
ज्ञान की सीमायें और सर्वज्ञता की संभावनायें
जिसकी व्याख्या नहीं हो सकती । श्रुतिपरक प्रमाणवादी विचारक मात्रात्मक या प्रकारात्मक दृष्टियों से तो ज्ञान की सीमा स्वीकार करते हैं किन्तु मूल्यात्मक दृष्टि से सर्वज्ञता की संभावना पर जोर देते हैं । उदाहरण स्वरूप, उपनिषदों में "जहां सर्वज्ञान की बात कही गयी है वहां मात्रा की दृष्टि से नहीं मूल्य की दृष्टि से कही गयी है। सर्वज्ञान का अर्थ है तत्त्वज्ञान ।"३ अवधारणात्मक विश्लेषणवादी दृष्टिकोण से ज्ञान को सीमा के प्रश्न का अर्थ है कुछ परिभाषित अज्ञेय क्षेत्र को स्वीकार करना। अज्ञेय चिन्त्य एवं अचिन्त्य दोनों हो सकता है । अत: “ज्ञान की सीमा का प्रश्न व्यक्ति या समाज की, अथवा वास्तविक या संभाव्य सीमा का प्रश्न नहीं है, और न ऐतिहासिक विकास-क्रम का है, यह अज्ञेयता का प्रश्न है। जैन दार्शनिक जिस समय आत्मा के अन्तर्गत अनन्तचतुष्टय को स्वीकार कर "अनन्त ज्ञान" को स्वीकार कर लेता है, उसी समय ज्ञान की सीमाओं का निराकरण हो जाता है । ऐन्द्रियिक ज्ञान की सीमा अवश्य मानी गयी है किन्तु वह तो परोक्ष ज्ञान माना गया है, प्रत्यक्ष ज्ञान में ज्ञान की कोई भी सीमा नहीं है। अतः जैन दर्शन ऐन्द्रियिक स्तर पर ज्ञान की सीमा को स्वीकार करता हुआ भी अनुभव से उत्पन्न अवश्यम्भावी संशयवाद एवं अज्ञेयवाद से बचता है । अतः यहां वास्तववाद एवं आदर्शवाद दोनों का समन्वय है। ज्ञान का स्तरभेद केवल भारतीय प्रमाणशास्त्र को ही स्वीकार्य नहीं बल्कि अन्य विचारकों को भी है । ज्ञानात्मक दृष्टिकोण सर्वव्यापक है, इसीलिये हमारे ज्ञान की सीमा वस्तुतः हमारे द्वारा ही निर्धारित होती है। ज्ञानात्मक चेतना तो सीमित है ही क्योंकि हम अपने सामने असंख्य दृश्यमान तत्त्वों में से किसी
१. डा० धीरेन्द्र कृत निबंध "ज्ञान-मीमांसा की नई व्याख्या' दार्शनिक
त्रैमासिक, अक्तूबर, १९६३, पृ० २२६ ।। २. डा० रमाकांत त्रिपाठी कृत निबंध "ज्ञान की सीमायें'-दार्शनिक - त्रैमासिक, अक्तूबर, १९६३-६४, पृ० २२२ । ३. वही, पृ० २१२ । ४. यशदेव शल्य कृत आलोचना "ज्ञान की सीमायें"-दार्शनिक त्रैमासिक,
अप्रैल, १९६४, पृ० १०-२ । ५. Gustava Weigel and Arthur Madden : Knowledge : Its
Value and Limits, Cliffs, 1961 p. 29. Five levels of
knowledge. ६. A. Sinclair : The conditions of knowing, Routledge and ___Kegan Paul, Lond. 1951, p. 13.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org