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________________ निरामिष आहार और पर्यावरण १२५ तंत्र पर भी पड़ता है। मृत्यु पूर्व तथा मत्यु के समय जानवर भावनात्मक तनाव के चरमोत्कर्ष पर होते हैं। इन जानवरों के मांस को तनाव कारक हारमोन, लैक्टिक अम्लतया टैक्सिक व्यक्त पदार्थों से युक्त रक्त मिलता रहता है जिससे कि पकाये गये मांस में सुरुचिपूर्ण सुगंध का निर्माण होता है । असल में मानव और प्रकृति के बीच का सम्बन्ध इतना नाजुक है कि हम वनस्पति पशु-पक्षी-मानव को अलग-अलग कर संतुलन नहीं रख सकते हैं। निरामिष आहार केवल जैविक ही नहीं सामाजिक-आर्थिक अनिवार्यता है। दक्षिण एशिया एवं केन्द्रीय अमेरिका की घनी आबादी वाले इलाकों में निरामिष आहार ही एकमात्र उपाय रह गया है क्योंकि जानवरों को रखने के लिये ज्यादा जमीन की जरूरत होगी। (डॉ० सुब्रह्मण्यं, का लेख १९९१ विश्व निरामिष कांग्रेस, १९६७, पृ०२२९) फिर मांसाहार की प्रवृत्ति बढ़ने पर यांत्रिक कृषि को प्रोत्साहन मिलेगा और यांत्रिक कृषि का अर्थ है डीजल-मोबिल की खपत और उससे वायु-प्रदूषण । यही नहीं जब यांत्रिक कृषि होगी तो रासायनिक खाद और फिर कीड़े मारने के लिये तरह-तरह के रासायनिक एवं जहरीली दवाओं का प्रयोग न केवल वातावरण को प्रदूषित करेगा बल्कि उस जमीन पर उपजने वाले धन-धान्य, फल-फूलों सब को विषाक्त कर देंगे। फिर तो हजारों-हजारों मेंढ़क मरेंगे, अनगिनत मिट्टी के कीड़े-मकोड़े समाप्त हो जायंगे जो किसी न किसी रूप में प्रकृति संतुलन में सहायक होते हैं । मृत जानवरों का मांस अक्सर भोजन में विषाक्तीकरण पैदा करता है । विषाक्त भोजन का तीन चौथाई हिस्सा पशु-आहार में पाये जाने वाले जीवाणुओं के कारण दूषित होता है। सालोनेला के कुछ जीवाणु प्रमुख रूप से भोजन को विषाक्त करने के लिये जिम्मेदार होते हैं जो जल्दी मरते नहीं । यह दुर्भाग्य कि बात है कि मांसाहार के कारण इधर जब विश्व की आधी आबादी अन्नाभाव से भूखी रहती है, उधर विश्व के अन्न का आधा भाग जानवरों को खिलाया जाता है कि उनका मांस भोजन के लिये प्राप्त हो सके। राष्ट्रीय शोध परिषद् की खाद्य एवं पोषण समिति ने हिसाब करके यह बताया है कि पेड़-पौधे वाली फसल के लिये हमें निश्चित कैलरी-शक्ति प्राप्ति के लिये जितनी भूमि चाहिये, पशुओं का मांस प्राप्त करने के लिये उससे छः गुनी चाहिये । जानवरों को चरने के लिये जो फसल लगाये जाते हैं, उन्हें तुरन्त उखाड़ना पड़ता है या उन्हें मवेशी चर जाते हैं, जबकि यदि वहां वृक्षादि लगाये जायें तो जमीन बचेगी और जल्दी खराब नहीं होगी। इस प्रकार भी मांसाहार पर्यावरण का संकट पैदा करता है । जानवर के मांस के लोभ में हम जमीन का क्षरण करते हैं एवं वृक्षादि नहीं लगाकर पृथ्वी को रेगिस्तान बनाने के दुष्चक्र में फंसते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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