SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन भी मानव, पशु एवं पर्यावरण के बीच सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व बनाने एवं उसे कायम रखने का प्रयत्न कर रहा है। [देखिये पेड़ों अचा का लेख"ए बैलेन्स्ड रिलेशनशिप'' 'वर्ल्ड कान्फ्रेस आन अहिंसा, एनीमल प्रोटेक्शन एन्ड हयूमैन न्यूट्रीशन, पृ० ७-१०] इसी कांफ्रेंस में जेडनेक भत्यास (लेखएनिमल्स एन्ड मैन, वही, पृ० १-७) में भी यही दर्शाया है कि मानव-स्वास्थ्य एवं कल्याण बहुत कुछ पशुओं पर आधारित है। श्री एस० एम० जैन ने अपने लेख (फारेस्ट फार फुड एन्ड डेवलपमेंट' पृ० १२-१८, वही) में यह सिद्ध किया है कि जंगलों के कट जाने से भू-क्षरण होता है, मिट्टी में नमक का प्राधान्य होने से वह अनुवर्रक होती है । ७००० हजार वर्ष पूर्व एशिया माइनर एवं मिश्र में सभ्यता आयी किन्तु जंगलों के विनाश के कारण वह रेगिस्तान में परिवर्तित हो गयी।" विश्व स्वास्थ्य संगठन की "विश्व स्वास्थ्य' नामक पत्रिका में भी मानव एवं पशु के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध मानव-स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये भी जरूरी है । (वही, पृ० २३-२४) आर्थिक दृष्टि से भी निरामिष आहार एवं पर्यावरण का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है । यह कहा जा सकता है कि यदि पशुओं को खाया नहीं जाए तो पशुओं की तादाद अत्यधिक हो जाएगी और मनुष्य को ही भूखा रहना होगा। यह ठीक है कि आज मनुष्य अपने स्वार्थ के लियो अपनी आवश्यकताओं से बहुत अधिक मांस देने वाले पशुओं को पालते हैं जिनसे प्रकृति का विनाश होता है। यह समझना चाहिये कि जितनी जमीन की भोजन के लिये एक मनुष्य को आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक जमीन एक जानवर को चाहिये । औसत ढंग से एक निरामिष आहारी व्यक्ति को यदि १ एकड़ जमीन की जरूरत होती है तो मांसाहारी को ६ एकड़, क्योंकि वह तो पशुओं का मांस खाता है और पशु-पालन के लिये मनुष्य की अपेक्षा कहीं अधिक जमीन चाहिये। इस दृष्टि से खाद्य संकट एवं बढ़ती आबादी की समस्याओं के समाधान के लिये निरामिष आहार पर विचार जरूरी है। मनुष्य की दीर्घकालीन भलाई के लिये पर्यावरण की रक्षा आवश्यक है । "दीमक से लेकर शेर तक सभी बिना किसी को चोट पहुंचाये जीने का गुर जानते हैं। इन्हीं की तरह लोग भी अपने निकटतम पर्यावरण से जुड़कर बिना उसे नुकसान पहुंचाये जीने की कला जानते रहे हैं ।" (हमारा-पर्यावरण दिल्ली : गांधी शांति प्रतिष्ठान, १९८८, पृ० २२५) मांसाहार ने भी इस सन्तुलन को बिगाड़ा है । यह कहना कि जानवरों के मांस से प्रोटोन मिलता है इसलिये उसका भक्षण हो, गलत है। पोषण शास्त्री अब इस बात पर सहमत हो गये हैं कि वनस्पति और जानवरों से प्राप्त प्रोटीन में कोई भेद नहीं है । उससे अस्वस्थ जानवरों के मांस भक्षण का कुप्रभाव हमारे स्नायु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy