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निरामिष आहार और पर्यावरण
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इतनी परती भूमि नहीं है कि हम उससे पशुओं को खिला सकें और फिर उन्हीं पशुओं को खाकर जीयें। हरीतिमा पृथ्वी का आवरण या त्वचा के समान है । विश्व के तीस बिलियन एकड़ भूमि में से ९ विलियन रेगिस्तान बन चुके हैं। जिसका अर्थ है लगभग एक तिहाई भूमि निर्वस्त्र या त्वचा विहीन लहु-लुहान है । जिस मनुष्य के शरीर का एक तिहाई चमड़ा उधेड़ दिया गया हो, उसकी मृत्यु अनिवार्य है । उसी प्रकार वृक्षों एवं वनों के रूप में पृथ्वी की एक तिहाई चमड़ी उधेड़ी जा चुकी है इसीलिये उसका अंत निकट है।
आज प्रकृति एवं मनुष्य के बीच का संघर्ष विनाश के कगार पर पहुंच चुका है। रासायनिक द्रव्यों ने कीड़े-मकोड़े को विनष्ट कर डाला। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, जंगल, सब्जी एवं फल आदि सभी चीजों पर कीटनाशक दवाओं का इतना छिड़काव हुआ है कि सम्पूर्ण प्राणी जगत् का ही उच्छेद होता जा रहा है। प्रदूषण के मध्य में हम जी रहे हैं। पृथ्वी को हमने रासायनिक उर्वरकों से निर्जीव कर दिया है, वायु भी प्रदूषित हो चुकी है, जल, भोजन आदि सब चीजें प्रदूषित तो हैं ही। औद्योगिक प्रतिष्ठानों से जो विषाक्त द्रव्य बाहर आते हैं, उनसे वनस्पति एवं प्राणी-जगत् प्रलयकारी विनाश के मुख में जा रहा है। पर्यावरण के जागतिक संकट का सामना करने के लिये यह आवश्यक हो गया है हम जीव-जगत् के संरक्षण पर ध्यान दें।
निरामिष आहार अहिंसा-भावना की ही अभिव्यक्ति है जो जीव और जीवन के प्रति आदर एवं निष्ठा का भाव है। निरामिष आहार का नैसर्गिक जीवन से स्वतः सम्बन्ध हो जाता है । जिस प्रकार निरामिष जीवनदर्शन "जीओ और जीने दो' की भावना पर आधारित है उसी प्रकार पर्यावरण भी इस दर्शन पर आश्रित है। प्रकृति में अनेकानेक जीव एवं उद्भिज हैं । हमें प्रकृति के साधनों का इतनी निर्दयता से उपयोग नहीं करना चाहिये कि पर्यावरण की क्षति हो। प्रकृति, माता की तरह इतनी उदार है कि वह हमारी सच्ची आवश्यकताओं की पूर्ति कर देती है, हां हमारे भोग की अदम्य लालसा को वह भले नहीं पूरा करे या उसे पूरा करने में पर्यावरण को क्षति पहुंचे ।
प्रकृति में मनुष्य, पशु-पक्षी एवं वनस्पति का एक अटूट सम्बन्ध है। मानव ही अपने लोभ-लालच के लिये इस संतुलन को बिगाड़ देता है। पशु एवं मानव का सान्निध्य संस्कृति का परम्परागत शाश्वत सत्य है। पशु-पक्षी मानव को केवल उत्पादन एवं भोजन प्राप्ति में ही नहीं बल्कि कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक मनोरंजन आदि भी प्रदान करते हैं। दोनों के बीच एक संतुलित सम्बन्ध रखना एक जैविक आवश्यकता है। अखिल अमरीकी स्वास्थ्य संगठन
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