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निरामिष आहार का दर्शन
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पक्षी की जान भी लेना गलत समझेंगे तो हमें मानवीय हिंसा में तो और भी संकोच होना चाहिये । इससे मन में भी शान्ति मिलती है और जब मन में शान्ति होगी तो बाहर भी शांति का वातावरण बनेगा। विज्ञान ने शरीर को भले तृप्त किया हो लेकिन मन अशांत है एवं आत्मा प्यासी है। निरामिष आहार हमारे मानसिक तनाव को दूर करने की दिशा में उपयोगी है । जब तक हम मानसिक तनाव से मुक्त नहीं होंगे, हम शान्ति का स्वप्न नहीं देख सकते । यदि युद्ध की योजना हमारे मस्तिष्क में बनती है तो शांति की रचना भी हमारे मस्तिष्क में होगी। निरामिष आहार शान्ति के जीवनदर्शन पर आधारित है । आज विश्वशांति इसलिये मृग मरीचिका हो रही है कि हम चाहते हैं शान्ति लेकिन आयोजन करते हैं युद्ध का। मांसाहार भी प्रकृति में निर्दोष, मूक एवं निर्बल पशुओं के ऊपर मानवों का क्रूर युद्ध ही है। यही भावना जब ऊपर होती है तो वह मानव-युद्ध का रूप धारण कर लेता है । अहिंसा की भावना ही निरामिष आहार का तत्त्व-दर्शन है। अहिंसा माता की गोद के समान समस्त प्राणियों को अभय प्रदान करने वाली है, इस शब्द की मधुरता के स्वाद से ही प्राणियों के परस्पर वैर भाव का उपशम होता है, उससे हृदय को शांति मिलती है फिर विश्वशान्ति संभव हो जा सकती है। अंतः शान्तिः बहिशांतिः ।
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