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________________ १०६ . जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन रखना सामाजिक-हिंसा का स्थूल रूप है । धार्मिक क्षेत्र में अहिंसा की भावना "सर्वधर्म समभाब'' में ही आ कर साकार हो सकती है । विचार जब धार्मिक आग्रहवाद पर आरूढ़ हो जाता है तो वह सम्प्रदाय बनकर असहिष्णु एवं हिंसक हो जाता है। साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में अहिंसा की भावना एक उदार एवं जीवनोन्मुख दृष्टि रखती है । साहित्य के क्षेत्र में अहिंसा अनेक वस्तुओं का, अनेक रीति से प्राचीन एवं नवीन ज्ञान संचित करने के लिए प्रेरित करतीहै । अहिंसक संस्कृति अनिवार्यत: सामाजिक संस्कृति होगी। शायद यह दुहराना आवश्यक नहीं होगा कि अहिंसक संस्कृति का आधार शोषण हो ही नहीं सकता । यहां मैं बहुत विनम्रता के साथ कहता चाहूंगा कि शोषण के आधार पर निर्मित बड़े बड़े कलात्मक राजप्रासाद या कला को ति भले ही विशुद्ध कला की दृष्टि से उत्तम हों लेकिन वे अहिंसक संस्कृति के प्रतीक नहीं हो सकते । राष्ट्रीय सन्दर्भ में क्रमशः निरंकुश राजसत्ता के बदले जनतंत्र की ओर विश्व मानस की प्रवृत्ति अहिंसा की ओर एक शक्तिशालो कदम है । सच्चे जनतंत्र का आधार कभी भी हिंसा नहीं हो सकता । यहां बहुमत का राज्य के लिए भले ही हो लेकिन अल्पमत आदर रहता है । ईसा ने कहा "अपने शत्रुओं को प्यार करो" और जनतंत्र कहता है अल्पमत का आदर करो। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अन्तर्राट्रीय कानून, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का उत्तरोत्तर विकास एवं उनकी मान्यताएं बढ़ती हुई अहिंसा का ही संकेत है । आज तो साम्यवादी रूस भी "युद्ध की अनिवार्यता" में विश्वास छोड़कर राजनैतिक सह-अस्तित्व का प्रतिपादन कर रहा है । उसी तरह विश्व सरकार की और मानव की उत्तरोत्तर वढ़ती हुई आकांक्षायें भी विश्वव्यापिनी अहिंसा की भावना का समर्थन करती हैं । मैं मार्क्स एवं गांधी के विचारों में प्राप्य राज्य शासन के विलयन की कल्पना पाता हूं, शासन के साथ हिंसा का अनुस्यूत सम्बन्ध हो जाता है। . दंड शास्त्र एवं दंड विधान के क्षेत्र में भी हम अहिंसा की ओर स्पष्ट कदम पाते हैं । यों तो दंड का आधार ही हिंसा है, किन्तु आज सभ्यता के ही नाम पर बहुत से देशों में प्राणदण्ड तो उठाया जा रहा है साथ-साथ दंड को कम से कम नृशंस एवं क्रूर बनाने का भी प्रयास हो रहा है । उसी तरह अपराधी बालकों के लिए जेलखाने के बदले सुधारात्मक पाठशालाओं की व्यवस्था हो रही है। शिक्षा शास्त्र के नये आयाम में भी दंड एवं हिंसा एक बर्बरता मानी गयी है । शिक्षा का वास्तविक अर्थ है-अन्तनिहित गुणों की अभिव्यक्ति, जो जबर्दस्ती या दंडविधान के द्वारा संभव नहीं । अतः हम यह विश्वास पूर्वक कह सकते हैं कि सच्ची शिक्षा ही नहीं, कोई भी शिक्षा अहिंसक ही हो. सकती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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