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________________ मानव समाज एवं अहिंसा १०१ प्रायः सर्वसामान्य रूप से अपराधियों को दोषी मान लेने की अपेक्षा निदोष मान लिया जाता है, जिसे हम (Benefit of doubt) कहते हैं । यह कुछ और नहीं बल्कि मानव-स्वभाव की साधुता में आस्था की अभिव्यक्ति है । मानवीय संस्कृति के विकास का इतिहास, और विशेषकर मानवीय कल्याण के निमित्त विज्ञान का अनुपम योगदान मनुष्य के अन्तनिहित सद्गुणों में विश्वास व्यक्त करता है । आचारशास्त्र की आधारशिला भी आत्म-स्वातंत्र्य के साथ-साथ व्यक्ति के विवेक पर ही स्थिर है। नैतिकता का निर्धारण करने वाली हमारी ऐच्छिक क्रियायें हमारी विवेकबुद्धि पर ही आश्रित हैं। धर्म शास्त्र की धारणा भी मानव-स्वभाव की आधारभूत साधुता पर ही टिकी हुई है । जीवन-दर्शन के दृष्टिक्रम में भी मनुष्य को स्वभावतः दुष्ट मान लेने में निखिल मानव जाति का अपमान तो है ही निराशावाद भी इसमें कमाल का हैं । इसीलिए यदि मानव-स्वभाव की दुष्टता की हम वस्तुस्थिति स्वीकार कर भी लें तो हमारा यह जीवन-सिद्धान्त या जीवन-दर्शन कदापि नहीं हो सकता। ३. मानव समाज : विकास एवं उपलब्धि : मानवीय आचार संहिता की प्रयोगशाला का सर्वश्रेष्ठ आविष्कार शायद परार्थवाद ही माना जायगा । परार्थबाद के मूलाधार मानव-विवेक एवं मानव साम्य की भावना ही है । मानवीय---चिंतन की दिशा सदैव ही उसकी संकुचित परिधि से खींच कर बाहर ले जाने का उपक्रम करती रही है । यदि ऐसा नहीं हुआ रहता तो शायद साहित्य, संस्कृति, कला आदि का भी विकास कुंठित ही रहता, आध्यात्मिक चेतना तो मृतप्राय रहती ही। प्राकृतिक नियम एवं वस्तुस्थिति ने मानव पर प्रभाव तो बहुत ही डाला हैं किन्तु अन्त में यह मानवीय आकांक्षाओं के सम्मुख पराजित ही हुआ है । इसका मूल कारण यह है कि वस्तुस्थिति जीवन-सिद्धान्त नहीं बन सकती । वास्तव में वस्तुस्थिति की सिद्धान्त की ओर प्रगति ही संस्कृति है। दूसरे शब्दों में "दूसरे के जीवन में शामिल होना और दूसरे को अपने जीवन में शामिल करना ही संस्कृति है।" अत: संस्कृति जिन्दगी की यह साझेदारी, यह शिरकत यह तहजीब या कल्चर है । और यही तो परार्थवाद भी है इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय संस्कृति के विकास-क्रम में उत्तरोत्तर सौम्य से सौम्वतर या सुन्दर से सुन्दरतर की परार्थवादी प्रक्रिया ही परिलक्षित होती हैं । इसीलिए तो प्राणिशास्त्र के क्रान्तिकारी प्रवर्तक डार्विन ने यदि Survival of the fittest का प्राकृतिक-सिद्धांत उपस्थित किया तो परवर्ती प्राणीविज्ञान के अधिकारी जुलियन हक्सले ने fitting the unfit to survive (जो अक्षम हैं, उन्हें सक्षम बनाने) का विचार रखा । यानी हम Live up on Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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