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________________ ९६ जैनदर्शन : चिन्तन-अनुचिन्तन नहीं है। आज विश्व की दो प्रमुख समस्याओं में महाशक्तियों के बीच बढ़ते हुए संघर्ष और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच बढ़ती हुई विषमता को ही यदि हम मान लें तो इसका निराकरण अहिंसा और अपरिग्रह के आचरण से ही संभव है । "आयारो" मुख्य रूप से आचार शास्त्र है । भगवान महावीर ने आचार का निरूपण व्यापक अर्थ में किया है। उनके अनुसार आचार के पांच प्रकार है--ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप और वीर्य इस निरूपण के अनुसार आचार ज्ञान, दर्शन और चरित्र सबको स्पर्श करता है। भगवान् महावीर के आचार दर्शन का माधार समता है। इसलिये समत्वदर्शी पाप नहीं करता।' वास्तव में राग-द्वेष रहित कर्म ही आचार है। भगवान महावीर ने वीरता मूलक आचार का अपने प्रवचन एवं जीवन दोनों में प्रतिपादन किया है। वस्तुतः वे समता के शास्ता थे। उन्होंने समता के शासन द्वारा जीवन के रूपान्तरण की दिशा दी है। अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में यदि हम विचार करें तो राजनैनिक क्षेत्र में प्रभुत्व-विस्तार और आर्थिक क्षेत्र में दूसरे के शोषण की कीमत पर अपने अर्थतंत्र का प्रसार जागतिक समस्या की जड़ में है। शस्त्रीकरण तो लक्ष्य है, मूलकारण तो उपर्युक्त ही है। उनके निराकरण के लिये हमें आज शांति या समाजवाद के प्रवचन की आवश्यकता नहीं बल्कि अहिंसा और अपरिग्रह के आचरण की आवश्यकता है। जागतिक संकट मूलत : आचरण का संकट है हम सभी जानते हैं कि शस्त्रीकरण या हिंसा मानव द्रोह है, फिर भी उसे आचरण में नहीं ला पाते । हम सभी समझते हैं कि किसी का शोषण करना गलत है, फिर भी आचरण में शोषण आता है। रामायणकाल में जो समस्या रावण की थी, महाभारत काल में दुर्योधन की थी, वही समस्या आज जागतिक क्षेत्र में अमरीका के राष्ट्रपति या रूस के राष्ट्रपति की ही नहीं सबों की है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि क्या अच्छा है, लेकिन उसका आचरण नहीं करते और जानते हैं कि क्या खराब है, उससे अपने को वंचित नहीं करते । आचारांग विचार एवं आचार के इसी द्वैत को मिटाने का एक प्रयास है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003097
Book TitleJain Darshan Chintan Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjee Singh
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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