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अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं एवं आयारो
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प्रमत्त होकर उनके साथ वास करता है ।' अनासक्ति लोक विजय का मार्ग है ।" और कुशल पुरुषों को इसमें लिप्त नहीं होने की सलाह है। आज जब अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति की ओर हम निहारते हैं तो यह "मैं" और "मेरा" के प्रति आसक्ति ही विग्रह के मूल कारण प्रतीत होते हैं । अपनी जाति, सम्प्रदाय, नस्ल एवं राष्ट्र के प्रति आसक्ति ही विग्रह के कारण हैं । लेकिन अनासक्ति एक दिन में नहीं आ सकती हमें अनासक्ति के लिए आहार की अनासक्ति और कर्म की अनासक्ति का अभ्यास करना होगा । काम दुर्लघ्य है । आसक्त पुरुष उत्तरोत्तर कामों के पीछे चक्कर लगा रहा है । इसके विपरीत अनासक्त पुरुष अरति को सहन नहीं करता। वह शब्द, रूप, गंध और स्पर्श को सहन करता है, उनके प्रति राग-द्वेष पूर्ण मन का निर्माण नहीं करता है | भगवान महावीर की साधना के मुख्य चार अंग थे-- इसमें अप्रमाद अहिंसा, अपरिग्रह और अनासक्ति एवं अप्रमाद मौलिक आधार हैं - यानी निरंतर जागते रहना । अप्रमाद का प्रथमसूत्र है - संपिक्खए अप्पगमप्पएण आत्मा से आत्मा को देखो । आत्म-दर्शन का अर्थ ही है, अनन्य दर्शन ।' वासना और कषाय ( क्रोध, मान, माया, लोभ) ये आत्मा से अलग (अन्य ) हैं, अतः आत्मा को अनन्य रूप से ही जानना सम्यक् ज्ञान है, इसको देखना ही सम्यग् दर्शन है, इसमें रमण करना ही सम्यक् चारित्र है । अप्रमाद का दूसरा सूत्र है, वर्तमान में जीना । जो अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना में खोया रहता है, वह वर्तमान में नहीं रह सकता । इसका अर्थ हुआ कि जो व्यक्ति एक क्रिया करता है किंतु जब उसका मन दूसरी क्रिया में दौड़ता है, तब वह वर्तमान के प्रति जागरूक नहीं रह पाता है । अतः जो आत्मा के स्वरूप को जानता है, वह प्रमाद नहीं करता है ।" वह बाह्य जगत् को अपनी आत्मा के समान देखता है ।" जहां तदात्म्य है, वहां द्रोह संभव ही
१. वही, २ / २-३
२. वही, २/४६
३. वही, २/४८ ४. वही, २ / १०४-११२
५. कही, २ / १२१
६. वही, २ / १२६
७. वही, २/१६०, २/१६१
८. दशवैकालिक चूलिका, २/११ ९. आयारो, २/१७३
१०. वही, ३ / ५१ ११. वही, ३/५२
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