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होता है ।
स्पर्श आदि का विशेष बोध जिससे किया जाता है, वह इंद्रिय विशेष बोध है और ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम है। जिससे स्पर्श आदि का सामान्य-बोध किया जाता है वह चक्षुः- अचक्षुः दर्शन है और दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम है।
जीव-अजीव
जन्म - धारण के समय जिन पुद्गलों के द्वारा इन्द्रियों का आकार बनता है, वह इंद्रिय-पर्याप्ति है और नाम-कर्म का उदय है ।
ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति में जैसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय का क्षय-क्षयोपशम अपेक्षित है, वैसे ही अन्तराय का क्षय क्षयोपशम भी अपेक्षित है ।
इन्द्रिय-प्राण इन्द्रिय-ज्ञान की शक्ति है। वह अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होती है ।
प्रश्न -- शरीर, स्पर्शनेन्द्रिय, कायबल और काययोग में क्या अन्तर है ? उत्तर-- शरीर, यह औदारिक आदि वर्गणा से होने वाली पौद्गलिक रचना है और जितना दृश्यमान है उतने स्थान में है ।
स्पर्शनेन्द्रिय- इसके दो भेद हैं- द्रव्य और भाव । द्रव्य-स्पर्शन-इंद्रिय अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी है और वह नाम-कर्म के उदय से होती है। भाव - स्पर्शन - इन्द्रिय स्पर्शन को जानने की शक्ति है और वह ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होती है। स्पर्शन-इन्द्रिय समूचे शरीर में फैली हुई है। इससे प्राणी को स्पर्श का अनुभव होता है । शरीर का कोई भाग ऐसा नहीं, जिसमें स्पर्शन-इन्द्रिय वर्तमान न हो । शरीर या काय के बिना स्पर्शन- इंद्रिय टिक नहीं सकती। फिर भी शरीर और स्पर्शन -इंद्रिय दो भिन्न वस्तुएं हैं।
कायबल - यह शरीर को प्रवृत्त करने वाली शक्ति है । यह अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होता है।
काययोग–यह हलन-चलन की प्रवृत्ति है ।
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