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________________ चौथा बोल (२) उपकरण-द्रव्येन्द्रिय-आभ्यन्तर-निवृत्ति के भीतर अपने-अपने विषय को ग्रहण करने में समर्थ जो पौदगलिक शक्ति होती है, उसे उपकरण-द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। प्रश्न-आभ्यन्तर-निवृत्ति-द्रव्येन्द्रिय और उपकरण-द्रव्येन्द्रिय में क्या भेद उत्तर-आभ्यन्तर निवृत्ति है आकार और उपकरण है उसके भीतर विद्यमान अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पौद्गलिक शक्ति । वात-पित्त आदि से उपकरण-द्रव्येन्द्रिय नष्ट हो जाए तो आभ्यंतर द्रव्येन्द्रिय होने पर भी विषयों का ग्रहण नहीं होता । उदाहरणार्थ-बाह्य निर्वृत्ति है तलवार, आभ्यंतर निर्वृत्ति है तलवार की धार और उपकरण है तलवार की छेदन-भेदन शक्ति। भावेन्द्रिय के दो भेद हैं : (१) लब्धि-भावेन्द्रिय-ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम' होने पर स्पर्श आदि विषयों को जानने की जो शक्ति होती है, उसे लब्धि भावेन्द्रिय कहते हैं। (२) उपयोग-भावेन्द्रिय-ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त शक्ति की प्रवृत्ति को उपयोग-भावेन्द्रिय कहते हैं। प्रश्न--लब्धि और उपयोग में क्या अन्तर है? उत्तर--लब्धि है चेतना की योग्यता और उपयोग है चेतना का व्यापार। प्रकारान्तर से लब्धि-भावेन्द्रिय का अर्थ है--स्वरूप की प्राप्ति अर्थात् आत्म-स्वरूप का उतना प्रकट होना कि जिसकी प्रवृत्ति से जीव स्पर्श, गन्ध, रूप, रस और शब्द को जान सके। और उनकी जानने की जो प्रवृत्ति है वह उपयोग-भावेन्द्रिय है। उदाहरणार्थ--किसी व्यक्ति ने एक दूरबीन यन्त्र खरीदा, यह तो हुई प्राप्ति और उस यंत्र से उसने दूर-स्थित पदार्थों का निरीक्षण किया, यह हुआ उपयोग । प्रश्न-इन्द्रिय के निर्वृत्ति, उपकरण, लब्धि और उपयोग-ये चार भेद किये गए हैं, उनका आधार क्या है? १. क्षय और उपशम से क्षयोपशम शब्द बनता है। जब क्षययुक्त उपशम होता है तब उसे क्षयोपशम कहते हैं। क्षय का अर्थ है-आत्मा से कर्म का सम्बन्ध छूट जाना और उपशम का अर्थ है कर्म का आत्मा के साथ सम्बन्य रहते हुए भी उसका आत्मा पर फलरूप में असर न होना। क्षयोपशम सिर्फ घाति-कर्म का ही होता है। क्षयोपशम में प्रदेशोदय रहता है और उपशम में प्रदेशोदय नहीं रहता, यही क्षयोपशम और उपशम का अन्तर है। क्षयोपशम से आत्मा की जो अवस्था होती है, उसे क्षायोपशमिक-माव कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003096
Book TitleJiva Ajiva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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