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जैन विद्या रत्न (प्रथम वर्ष) १६८० प्रथम प्रश्न पत्र समय : ३ घंटा
पूर्णांक : १०० १. केवल नाम लिखिये
तिर्यच के दण्डक, आत्मा के आठ गुण, शुभ लेश्या, शुभ ध्यान,
सम्यक्त्व के पांच भूषण, श्रावक के चार शिक्षाव्रत, आठ वर्गणायें। २. पांच की परिभाषा लिखें
१० द्रव्य योग, क्षीण मोह गुणस्थान, शरीर पर्याप्ति, संक्रमण,
अपवर्तनीय-आयु, अप्रमाद संवर, अचक्षुदर्शन । ३. दो का अन्तर लिखिये(क) औदारिक शरीर और वैक्रिय शरीर का । (ख) द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या का । (ग) प्रथम और तीसरे गुणस्थान का। ४. परिहार विशुद्वि चारित्र की साधना की विधि लिखिये ।
१०
या
पांच कोटि के त्याग किस प्रकार किये जाते हैं? तथा इसमें कितने भंग
रुकते हैं और कौन कौन से। ५. केवल एक शब्द में उत्तर दें
धर्मास्तिकाय का गुण, काल का द्रव्य, आकाश का क्षेत्र, पुद्गल का वर्ण,
चौदहवें गुणस्थान का कालमान । ६. केवल तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिये(क) काल को अनन्त और अप्रदेशी क्यों कहा गया है? (ख) गुणस्थानों के निर्माण का आधार क्या है? (ग) पर्याप्तियां छह हैं जबकि प्राण दश हैं। ऐसा क्यों?
(घ) ज्ञानावरणीय बन्ध के कारण लिखिये। ७. "निमित्त मिलने पर अकाल मृत्यु हो सकती है।" असे उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
या
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