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चौबीसवां बोल
भांगा ४६
प्रज्ञा दो प्रकार की होती है-ज्ञ-प्रज्ञा और प्रत्याख्यान-प्रज्ञा। ज्ञ-प्रज्ञा से पदार्थों का स्वरूप जाना जाता है। प्रत्याख्यान-प्रज्ञा से हेय(त्यागने योग्य) वस्तु का त्याग किया जाता है। इन दोनों का गहरा सम्बन्ध है। ज्ञ-प्रज्ञा के बिना हेय और उपादेय, अच्छे या बुरे का ज्ञान नहीं हो सकता और प्रत्याख्यान-प्रज्ञा-त्याग के बिना कर्म आने का द्वार नहीं रुक सकता । इस बोल में प्रत्याख्यान-त्याग करने का क्रम प्रदर्शित है। साधारणतया त्याग का रूप इतना ही समझा जाता है कि मैं अमुक बुरा काम नहीं करूंगा। किन्तु यह त्याग का स्थूल रूप है। जब तक नौ-कोटि के द्वारा प्रत्याख्यान--त्याग नहीं किया जाता तब तक वह पूर्ण नहीं होता।
नौ कोटि का त्याग यंत्र भंगे
रूकने वाले भंगों का विवरण कोटि का नाम
११ १२ १३, २१ २२ २३, ३१ ३२ ३३ _ रूके १. एक कोटि त्याग
करूं नहीं काया से ११ ----- दो कोटि त्यागकरूं नहीं वचन से, काया ३ २ १-----------
७३३१-----------
३. तीन कोटि त्याग
करूं नहीं मन से,
वचन से, काया से, ४. चार कोटि त्याग
करूं नहीं मन से, वचन से, काया से। कराऊं नहीं काया से
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