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जीव-अजीव
फिर भी वह जीव नहीं है। मुक्त जीव न खाते हैं, न पीते हैं तो भी वे जीव हैं। इस प्रकार और भी अनेक लक्षण जीव की पहचान कराने के लिए प्रस्तुत किए जा सकते हैं, परन्तु उन सब में जीव का व्यापक लक्षण चैतन्य ही है। कोई भी ऐसा जीव नहीं, जिसमें चैतन्य न हो। एक इन्द्रिय वाले जीव से लेकर पंचेन्द्रिय जीव में, मन-सहित जीव में, अतीन्द्रिय जीव में, प्रत्यक्ष ज्ञान वाले जीव में सभी में न्यूनाधिक रूप से चैतन्य या ज्ञान की मात्रा तीनों ही काल में निश्चित रूप से मिलेगी। इसका अर्थ यह नहीं कि जो बुद्धिमान् होता है वही जीव है। बुद्धिमान् ज्ञान के अधिक विकास से कहलाता है, पर चैतन्य का अर्थ बुद्धिमान होना नहीं। उसका अर्थ है जानने या अनुभव करने की शक्ति का होना। कम से कम अनुभव रूप ज्ञान तो प्रत्येक आत्मा में मिलेगा ही।
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