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८८ : भिक्षु विचार दर्शन
पं. जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है-“गांधीजी ने हमें सबसे बड़ी शिक्षा यह दी या फिर से याद कराई कि हमारे साधन पवित्र होने चाहिए, क्योंकि जैसे हमारे साधन होंगे, वैसे ही हमारे साध्य और ध्येय भी होंगे।
एक योग्य साध्य तक पहुंचने के साधन भी योग्य होने चाहिए। यह बात एका श्रेष्ठ नैतिक सिद्धान्त ही नहीं बल्कि एक स्वस्थ व्यावहारिक राजनीति मालूम पड़ती थी, क्योंकि जो साधन अच्छे नहीं होते, वे अक्सर साध्य का ही अन्त कर देते हैं और उनमें नई समस्याएं तथा कठिनाइयां उठ खड़ी होती हैं।"
“जो साधन अच्छे नहीं होते वे अकसर साध्य का ही अन्त कर देते हैं"-इसका उदाहरणं आचार्य भिक्षु ने प्रस्तुत किया है। देव, गुरु और धर्म की उपासना धार्मिक का साध्य है। उपासना का साधन है अहिंसा। किन्तु जो व्यक्ति हिंसा के द्वारा उनकी उपासना करता है, वह मिथ्योदृष्टि है। सम्यग्दृष्टि वह है जो धर्म के लिए हिंसा नहीं करता।
वर्तमान राजनीति में दो प्रकार की विचारधाराएं हैं-साम्यवादी और इतरसाम्यवादी। जनता का जीवन-स्तर ऊंचा करना-दोनों का लक्ष्य है। पर पद्धतियां दोनों की भिन्न हैं। __साम्यवादी विचारधारा यह है-लक्ष्य की पूर्ति के लिए साधन की शुद्धि का विचार आवश्यक नहीं है। लक्ष्य यदि अच्छा है तो उसकी पूर्ति के लिए बुरे साधनों का प्रयोग भी आवश्यक हो तो वह करना चाहिए। एक बार थोड़ा अनिष्ट होता है और आगे इष्ट अधिक होता है। गांधीवादी विचार यह है कि जितना महत्त्व लक्ष्य का है उतना ही साधन का। लक्ष्य की पूर्ति येन-केन प्रकारेण नहीं, किन्तु उचित साधनों के द्वारा ही करनी चाहिए। : ___आचार्य भिक्षु के समय में भी साधन-शुद्धि के विचार को महत्त्व न देने वाली मान्यता थी। उसके अनुयायी कहते थे-"प्रयोजनवश धर्म के लिए हिंसा का अवलम्बन किया जा सकता है। एक बार थोड़ी हिंसा होती
१. राष्ट्रपिता, पृ. ३६ २. व्रताव्रत : १.३५, ३७ । ३. वहीं: १.४० :
कहे म्हे पाप करां थोड़ो सो, पछे होसी धर्म अपारो रे। सावध काम करां इण हेते, तिणथी खेवो पारो रे॥
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