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________________ साध्य - साधना के विविध पहलू : ८७ आध्यात्मिक जगत् का साध्य है आत्मा की पवित्रता और उसका साधन वही है । आत्मा की अपवित्रता कभी भी आत्मिक पवित्रता का साधन नहीं बन सकती। पहले क्षण का साधन दूसरे क्षण में साध्य बन जाता है और वही उसके अगले चरण का साधन बन जाता है। पहले क्षण का जो साध्य है वह अगले क्षण के लिए साधन है। पवित्रता ही साध्य है और वही साधन है 1 साध्य और साधन की एकता के विचार को आचार्य भिक्षु ने जो सैद्धान्तिक रूप दिया, वह उनसे पहले नहीं मिलता । शुद्ध साध्य के लिए साधन भी शुद्ध होने चाहिए। इस विचार को उनकी भाषा में जो अभिव्यक्ति मिली, वह उनसे पहले नहीं मिली । साध्य और साधन की सिद्धि का सिद्धान्त अब राजनीतिक चर्चा में भी उतर आया है। एम्मा गोल्डमैन ने, जिनके विचार बड़े क्रान्तिकारी कहे जाते हैं, हाल में लन्दन में एक भाषण में कहा था - "सबसे हानिकारक विचार यह है कि यदि साध्य ठीक है तो उसके लिए हर तरह के साधन ठीक समझे जाएंगे। अन्त में साधन ही साध्य बन जाते हैं और असली साध्य पर दृष्टि ही नहीं जाती ।" स्वयं ट्राटस्की ने लिखा है - " जिसका लक्ष्य साध्य पर रहता है वह साधनों की उपेक्षा नहीं कर सकता । किन्तु शायद उसने यह नहीं समझा कि साधन का कितना बड़ा प्रभाव साध्य पर पड़ता है। बुरे साधनों से तो बुरा साध्य ही प्राप्त होगा, इसलिए चाहे जैसे साधन प्रयुक्त करने का सिद्धान्त कभी उचित नहीं हो सकता ।" " आचार्य भिक्षु ने दो शताब्दी पूर्व कहा था - "शुद्ध साध्य का साधन अशुद्ध नहीं हो सकता और शुद्ध साधन का साध्य अशुद्ध नहीं हो सकता । मोक्ष साध्य है और उसका साधन है संयम । वह संयम के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है । जो व्यक्ति लड्डुओं के लिए तपस्था करते हैं, वे कभी भी धर्मी नहीं हैं और उद्देश्य से तपस्या करने वालों को जो लड्डू खिलाते हैं, वे भी धर्मी नहीं हैं।"२ १. अहिंसा की शक्ति ( रिर्चड वी. ग्रेग), पृ. ६० २. बारह व्रत की चौपाई : १२ १२ : ते तो अरथी छे एकान्त पेट रो, ते मजूरीया तणी छै पांत जी । त्यांरा जीव से कारज सझै नहीं, उलटी घाटी गला मांहे रांत जी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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