________________
८६ : भिक्षु विचार दर्शन बच सकती।
आक्रमण के प्रति आक्रमण और शक्ति-प्रयोग के प्रति शक्ति-प्रयोग कर हम हिंसा के प्रयोगात्मक रूप को टालने में सफल हो सकें, यह सम्भव है। पर वैसा कर हम हृदय को पवित्र कर सकें या करा सकें, यह सम्भव नहीं। आचार्य भिक्षु ने कहा-शक्ति के प्रयोग से जीवन की सुरक्षा की जा सकती है, पर वह अहिंसा नहीं है।
अहिंसा का अंकन जीवन या मरण से नहीं होता, उसकी अभिव्यक्ति हृदय की पवित्रता से होती है।
अनाचार करने वाले को समझा-बुझाकर अनाचार से छुड़ाना, यही है अहिंसा का मार्ग। हिंसा और वध संर्वथा एक नहीं हैं। अहिंसक के द्वारा भी किंचित् अशक्य कोटि का वध हो सकता है, किन्तु यदि उनकी प्रवृत्ति संयममय हो तो वह हिंसा नहीं होती। वध को बल-प्रयोग से भी रोका जा सकता है, किन्तु वह अहिंसा नहीं होती। अहिंसा तभी होती है जब हिंसा करने वाला समझ-बूझ कर उसे छोड़ता है। आचार्य भिक्षु ने कहा-प्रेरक का काम हिंसा को समझाने का है। अहिंसा के क्षेत्र में वह यहीं तक पहुंच सकता है। हिंसा तो तब छूटेगी जब हिंसा करने वाला उसे छोड़ेगा। ६. साध्य-साधन के बाद साध्य और साधन एक ही हैं, यह सुनकर सम्भव है कि आप पहले क्षण असमंजस में पड़ जाएं। तर्कशास्त्र आपको कार्य-कारण में भेद बतलाता है। वही धारणा आपकी साध्य और साधन के बारे में होगी। दो क्षण के लिए आप तर्कशास्त्र भुला दीजिए। अभी हम आध्यात्मिक क्षेत्र में घूम रहे हैं। हृदय-परिवर्तन का अर्थ ही आध्यात्मिकता है। . दिन हो या रात, अकेला हो या परिषद के बीच, सोया हुआ हो या जागत, प्रत्येक स्थिति में जो हिंसा से दूर रहता है, वह आध्यात्मिक है और दूर रहने की वृत्ति ही अध्यात्म है।
१. अणुकम्पा : ५.१५ : २. वही : ८.५१:
त्यांसू सरीरादिक रो संभोग टाले ने, ग्यानादिक गुण रो राखे भेलापो । उपदेश देह निरदावे रहिणो, पेलो समझेने टाले तो टलसी पापो॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org