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साध्य-साधना के विविध पहलू : ८५
को मार पंचेन्द्रिय का पोषण करने में धर्म नहीं है । ' .
५. हृदय परिवर्तन
मनुष्य की प्रवृत्ति के निमित्त तीन हैं- शक्ति, प्रभाव और सहजवृत्ति । सत्ता से शक्ति, सम्बन्ध से प्रभाव और हृदय परिवर्तन से सहजवृत्ति का उदय होता है । शक्ति राज्य संस्था का आधार है । प्रभाव समाज-संस्था या भौतिक जीवन का आधार है। सहजवृत्ति हृदय की पवित्रता का आधार है । शक्ति प्रेरित हो मनुष्य को कार्य करना पड़ता है । प्रभाव से प्रेरित होकर मनुष्य सोचता है कि यह कार्य मुझे करना चाहिए । सहजवृत्ति से प्रेरित होकर मनुष्य सोचता है कि यह कार्य करना मेरा धर्म है । सब लोग अहिंसा या मोक्षार्थी हो जाएं, यह कल्पना ठीक है । पर सबको अहिंसक या मोक्षार्थी बना देंगे, यह शक्ति का सूत्र है । हमें यह मानने में कोई आपत्ति नहीं होगी कि शक्ति के धागे में सबको एक साथ बांधने की क्षमता है । पर उससे व्यक्ति के स्वतन्त्र मनोभाव का विकास नहीं होता । वह व्यक्ति की चारित्रिक अयोग्यता का निदर्शन है । आपसी सम्बन्धों से प्रभावित होकर जो अहिंसक बनता है वह अहिंसा की उपासना नहीं करता । वह सम्बन्धों को बनाए रखने की प्रक्रिया है । प्रभाव मनुष्यों को बांधता है पर वह मानसिक अनुभूति की स्थूल रेखा है, इसलिए उसमें स्थायित्व नहीं होता ।
महाणुओं और पदार्थों से प्रभावित व्यक्ति जो कार्य करते हैं उनके लिए हम अहिंसा की कल्पना ही नहीं कर सकते । शक्ति के दबाव और बाहरी प्रभाव से रिक्त मानस में जो आत्मौपम्य का भाव जागता है वह हृदय परिवर्तन कहा जाता है। शक्ति और प्रभाव से दबकर जो हिंसा से बच जाता है, वह हिंसा का प्रयोग भले न हो, किन्तु वह हृदय की पवित्रता नहीं है, इसलिए उसे हृदय परिवर्तन नहीं कहा जा सकता ।
अहिंसा का आचरण वही कर सकता है जिसका हृदय बदल जाए । अहिंसा का आचरण किया जा सकता है, किन्तु कराया नहीं जा सकता । अहिंसक वही हो सकता है जो अपने को बाहरी वातावरण से सर्वथा अप्रभावित रख सके। बाहरी वातावरण से हमारा तात्पर्य शक्ति, मोहाणु और पदार्थ से है। इनमें से किसी एक से भी प्रभावित आत्मा हिंसा से नहीं
१. भिक्खु दृष्टान्त, २६४, पृ. १०५
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