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________________ ८४ : भिक्षु विचार दर्शन निष्क्रियता पर अवलम्बित है। मोहाणु मनुष्य को पदार्थ की ओर आकृष्ट करते हैं। उनकी मात्रा अधिक होती है तब वे आत्मा के सहजभाव को निजी बना देते हैं। जीवन और भोग साध्य बन जाते हैं। उनके लिए हिंसा की जाती है। आपने स्वयं अनुभव किया होगा और अनके लोगों को यह कहते सुना होगा कि बुराई को बुराई जानते हुए भी उसे छोड़ नहीं पा रहे हैं। यह स्थिति मोहाणुओं की सक्रियता से बनती है। उनकी निष्क्रियता के लिए कठोर साधना अपेक्षित है। इसलिए व्यवहार की विशृंखलता के काल्पनिक भय से अहिंसा की यथार्थता को बदलने की आवश्यकता नहीं है। संसार किसी का भी साध्य नहीं होगा, सब लोग अहिंसा का आचरण करना चाहेंगे-यह तर्क हो सकता है, वस्तुस्थिति नहीं। दुःख कोई नहीं चाहता, यह आप और हम सब मानते हैं। अपराधी भी दुःख के लिए अपराध नहीं करता है पर उसका परिणाम सुख नहीं है। जीवन-मुक्ति की दृष्टि से देखा जाए तो भोग भी अपराध है। भोगी दुःख के लिए भोग नहीं करता होगा पर भोग का परिणाम सुख नहीं हैं। साध्य की प्राप्ति केवल मान्यता से नहीं, किन्तु आचरण की पूर्णता से होती है। भोग का परिणाम संसार है इसलिए भोग-दशा का साध्य संसार ही होगा। भोगासक्त लोग यथेष्ट मात्रा में अहिंसा का आचरण करना चाहते भी नहीं और यदि चाहें तो कर नहीं सकते। आसक्ति और अहिंसा के मार्ग दो हैं। अहिंसा के फूल सुकुमारतम हैं। ये शक्ति के धागे में पिरोये नहीं जा सकते। ४. बल प्रयोग एकेन्द्रिय को मारकर पंचेन्द्रिय का पोषण करने में लाभ है, किसी ने कहा। आचार्य भिक्षु बोले-किसी व्यक्ति ने तुम्हारा तौलिया छीनकर दूसरे व्यक्ति को दे दिया, उसमें लाभ है या नहीं? एक व्यक्ति ने गेहूं के कोठों को लूट लिया, उसमें लाभ है या नहीं? वह बोला-नहीं। आचार्य-क्यों? वह बोला-उनके स्वामी के मन बिना दिया गया, इसलिए। आचार्य-एकेन्द्रिय ने कब कहा कि हमारे प्राण लूटकर दूसरों का पोषण करना। यह बलात्कार है, एकेन्द्रिय की चोरी है। इसलिए एकेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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