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________________ साध्य-साधना के विविध पहलू : ८३ बड़ों के लिए छोटों का बलिदान क्षम्य है, यह राजतन्त्र की मान्यता है पर अहिंसा नहीं है। ____ इन सिद्धान्तों से आत्मौपम्य या सर्वभूतात्मभूतवाद की रीढ़ टूटी है। विवशता, बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक तथा छोटे और बड़े के प्रश्न हिंसा के क्षेत्र में उठते हैं। अहिंसा का स्वरूप इन सभी प्रश्नों से मुक्त है। आत्मौपम्य के प्रयोग की भूमिकाएं विभिन्न हैं। रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति तीव्र होती है, आत्मौपम्य की बुद्धि मन्द हो जाती है। रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति मन्द होती है, आत्मौपम्य की बुद्धि तीव्र हो जाती है। मनुष्य का ज्ञान विशुद्ध होता है तब वह आत्मौपम्य को जानता है। उसकी दृष्टि विशुद्ध होती है तब वह आत्मौपम्य का आचरण करता है। कुछ लोग हिंसा को अनिष्ट जानते हुए भी अहिंसा में विश्वास नहीं कर पाते। यह वह स्थिति है जहां ज्ञान है पर दृष्टि की शुद्धि नहीं है। कुछ लोग हिंसा को आनष्ट जानते हुए और अहिंसा में विश्वास करते हुए भी उसका आचरण नहीं कर पाते। यह भूमिका है जहां ज्ञान और दृष्टि है पर चारित्रिक क्षमता नहीं है। __ इन भूमिका-भेदों को ध्यान में रखकर ही आचार्य भिक्षु ने हिंसा और अहिंसा, व्यवहार और परमार्थ का विश्लेषण किया। ३. संसार और मोक्ष संसार व्यवहार से चलता है। व्यवहार में हिंसा की अनिवार्यता है। यदि हिंसा और अहिंसा में अत्यन्त भेद न हो तो हिंसा करना कौन चाहेगा? उसके बिना व्यवहार नहीं चलेगा। व्यवहार के बिना संसार मिट जाएगा। प्रत्येक आदमी मोक्ष चाहता है, सुख चाहता है। उसका साधन अहिंसा है। सब लोग उसी का आचरण करना चाहेंगे। संसार किसी भी समझदार आदमी का साध्य नहीं है। दुःख कोई नहीं चाहता। वह हिंसा से होता है। उसका आचरण कोई नहीं करेगा, सारा व्यवहार गड़बड़ा जायेगा। इस तर्क की कसौटी पर आचार्य भिक्षु के अभिमत को कसा तो लोगों को संसार का भविष्य अंधकारमय दीखा। ____ आचार्य भिक्षु ने उसे उक्त भेदों के आधार पर सुलझाया। उन्होंने कहा-हिंसा और अहिंसा का सिद्धान्त मोहाणुओं की सक्रियता और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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