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________________ ८० : भिक्षु विचार दर्शन लेता है; (४) इन्द्रिय-विषयों का आस्वादन करता है; (५) पूजा-सत्कार चाहता है; (६) यह सपाप है, यों कहता हुआ भी उसका आचरण करता है; और (७) कथनी के अनुरूप करणी नहीं करता। यह एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक तथ्य है, इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। केवल सिद्धान्त और आचरण में गति लाने का प्रयत्न हुआ। फलस्वरूप हिंसा ने अहिंसा का रूप ले लिया। हिंसा उपादेय नहीं है-यह मान्यता-पक्ष रहा। जीवन-निर्वाह के लिए हिंसा अनिवार्य है-यह व्यवहार-पक्ष रहा। यह स्पष्ट विसंगति है, इसे मिटाने का और कोई मार्ग नहीं सूझा, तब ये व्याख्याएं स्थिर होने लगीं १. आवश्यक हिंसा, हिंसा नहीं है। २. बहुतों के लिए थोड़ो की हिंसा, हिंसा नहीं है। ३. बड़ों के लिए छोटों की हिंसा, हिंसा नहीं है। आचार्य भिक्षु ने इस ओर जनता का ध्यान खींचा कि यह दोहरी भूल है। एक तो हिंसा करना और दूसरे हिंसा को अहिंसा मानना। उन्होंने आत्म-विश्वास के साथ कहा-हिंसा कभी और किसी भी परिस्थिति में अहिंसा नहीं हो सकती। इनमें पूर्व और पश्चिम की-सी दूरी हैं। उन्होंने तर्क की भाषा में कहा-आवश्यकता की कोई सीमा नहीं है। आवश्यक हिंसा को अहिंसा माना जाए तो हिंसा कोई रहेगी ही नहीं। आवश्यकता की सृष्टि दुर्बलता के तत्त्वों से होती है। वे हिंसा को अहिंसा में बदल सकें इतनी क्षमता उनमें नहीं है, इसलिए आवश्यक हिंसा भी हिंसा है। ___ . महात्मा गांधी ने जीवन की विसंगति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-“श्रद्धा और कर्म में विरोध किसलिए? विरोध तो अवश्य है ही। जीवन एक झंखना है। इसका ध्येय पूर्णता अर्थात् आत्म-साक्षात्कार के लिए मंथन करने का है। अपनी निर्बलता और अपूर्णताओं के कारण आदर्श को नीचे गिराना नहीं चाहिए। मुझ में निर्बलता और अपूर्णता दोनों हैं, इसका दुःखद भान मुझे है। हालांकि बोरसद के लोगों के सामने मैंने अपने सहोदर चूहे, चीचड़ के विनाश का समर्थन किया, तथापि मैंने जीव-मात्र के प्रति शाश्वत १. अणुकम्पा, ६.७१ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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