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साध्य - साधना के विविध पहलू : ७७
के साधन भी काम्य हैं। साधन वही होता है जो साध्य के सर्वथा अनुकूल हो । जीवन-मुक्ति की साधना तभी हो सकती है जबकि जीवन टिके । जीवन अन्न और पानी के बल पर टिकता है। उसका अर्जन प्रवृत्ति से होता है, इसलिए सब काम्यों का मूल प्रवृत्ति है । इस तर्क के आधार पर जीवन - मुक्ति का साधन जीवन, जीवन का साधन अन्न-पानी और उसका साधन प्रवृत्ति है । इसलिए ये सब काम्य हैं।"
आचार्य भिक्षु ने इस कारण - परम्परा को पूर्ण सत्य नहीं माना। उन्होंने कहा - जीवन - मुक्ति का साध्य, संयत जीवन और अन्न-पान के अर्जन की प्रवृत्ति संयत हो तो यह क्रम साध्य के अनुकूल है, इसलिए काम्य हो सकता है। जीवन मुक्ति का साध्य, असंयत जीवन और अन्न-पान के अर्जन की प्रवृत्ति असंयत हो तो यह क्रम साध्य के अनुकूल नहीं है, इसलिए यह अकाम्य है । साध्य जीवन-मुक्ति का न हो, जीवन और अन्न-पान के अर्जन की प्रवृत्ति असंयत हो तो वह अकाम्य ही है । यह दिशा साध्य और साधन दोनों से शून्य है | आचार्य भिक्षु के धर्म और अधर्म, अहिंसा और हिंसा के पृथक्करण की भेद-रेखा यही है। उन्होंने कहा :
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"जीव जीता है, वह अहिंसा या दया नहीं है । कोई मरता है, वह हिंसा नहीं है । मारने की प्रवृत्ति हिंसा है और मारने की प्रवृत्ति का संयम करना अहिंसा है ।" "
उन्होंने दृष्टान्त की भाषा में कहा- चींटी जीवित रहे इसलिए आपने उसे नहीं मारा, यह अहिंसा या दया है तो हवा का झोंका आया, चींटी उड़ गई, आपकी दया भी उड़ गई। किसी का पैर टिका, वह मर गई, आपकी दया भी मर गई । जो अहिंसा किसी जीव को जिलाने के लिए होती है वह उसकी मौत के साथ चली जाती है और जो अपनी जीवन-मुक्ति के लिए होता है वह संयम में परिणत हो जाती है ।
आचार्य भिक्षु की भाषा में संयम और धर्म अभिन्न हैं । जीवन और मृत्यु की इच्छा असंयम है, इसलिए वह अधर्म है । वह अहिंसा नहीं है,
१. अणुकम्पा, ५-११
जीव जीवे ते दया नहीं, मरे ते हो हिंसा मत जाण । मारणवाला नें हिंसा कही नहीं मारे हो ते तो दया गुण खाण ।।
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