SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ : भिक्षु विचार दर्शन सरदास और मीरां के सर्वस्व कृष्ण तथा तुलसी के सर्वस्व राम थे. वैसे ही भिक्षु के सर्वस्व महावीर थे। वे स्वयं को महावीर के संदेश का वाहक मानते थे। एक बार एक व्यक्ति ने पूछा-महाराज! आप इतने जनप्रिय क्यों हैं? आपने कहा-एक पतिव्रता स्त्री थी। उसका पति विदेश में था। बहुत दिनों से पति का कोई समाचार नहीं मिला। एक दिन अकस्मात् एक समाचारवाहक आया और उसे उसके पति का सन्देश दिया। उसे अपार हर्ष हुआ। उसके लिए वह आकर्षण का केन्द्र बन गया। हम भगवान् के सन्देशवाहक हैं। लोग भगवान के भक्त हैं, भगवान् का सन्देश सुनने के लिए आतुर हैं। हम गांव-गांव में जाते हैं और लोगों को भगवान् का सन्देश सुनाते हैं। हमारे प्रति जनता के आकर्षण का यही हेतु है।' __ आचार्य भिक्षु की श्रद्धा आलोचक-बुद्धि से जुड़ी हुई थी। उन्होंने अनेक गुरुओं को देखा-परखा। आखिर स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य रुघनाथजी को अपना गुरु चुना। उनके पास जैनी-दीक्षा स्वीकार की। आठ वर्ष तक उनके संघ में रहे। चालू परम्परा और आचार में कुछ मतभेद हुआ। साध्य और साधन की विचारधारा भी नहीं मिल सकी। फलतः वे अपने आचार्य से पृथक् हो गए। गुरु का उनके प्रति स्नेह था और उनका गुरु के प्रति। फिर भी आलोचक-बुद्धि आचार-भेद को सहन न कर सकी। वे अपने आचार्य के प्रति कृतज्ञ रहते हुए भी उनके विचारों की आलोचना किये बिना नहीं रहे। भगवान् महावीर से बढ़कर उनके लिए कोई आराध्य नहीं था। एक ओर उन्होंने कहा-मुझे भगवान् महावीर का ही आधार है, और किसी का जिण आग्या ने ओलखी आपरी, आपरी नहीं ओलखी मून हो। तिण आप ने ओलख्या नहीं, तिणरे वधसी माठी माठी जून हो। कोई जिण आगन्यां वारे धर्म कहे, जिण आग्या माहे कहे छे पाप हो। ते दोनूं विध बूड़े छे बापड़ा, कूड़ो कर अग्यांनी विलाप हो। आपरो धर्म आपरी आग्या. मझे, आपरो धर्म नहीं आपरी आग्या बार हो। जिण धर्म. जिण आग्या बारे कहे, ते पूरा छे मूढ़ गिंवार हो॥ आप अवसर देखीने बोलीया, आप अवसर देखे साझी मून हो। जिहां आप तणी आगन्यां नहीं, ते करणी छे जाबक जबूंन हो। १. भिक्खु दृष्टान्त, ८७, पृ. ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy