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________________ प्रतिध्वनि : ६३ ६. श्रद्धावाद के पथ पर आचार्य भिक्षु के पास श्रद्धा का भी अमित बल था। वे जितने तार्किक थे, उतने ही श्रद्धालु । श्रद्धा और तर्क के संगम में ही व्यक्ति का दृष्टिकोण पूर्ण बनता है। कुसुम्भा स्वयं गलकर दूसरों को रंगता है। भक्त-हृदय का गीलापन दूसरों को स्निग्ध कर देता है। आचार्य भिक्षु की अटल आस्था इस कोटि की है कि वे भगवान् महावीर और उनकी वाणी पर स्वयं को न्यौछावर कर चलते हैं। उनके समर्पण की भाषा यह है- “प्रभो! आपने सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप को मुक्ति का मार्ग कहा है। मैं इनके सिवा और किसी तत्त्व को धर्म नहीं मानता। मैं अर्हन्त को देव, निर्ग्रन्थ को गुरु और आपके द्वारा प्ररूपित-मार्ग को ही धर्म मानता हूं। मेरे लिए और सब भ्रमजाल हैं। मेरे लिए आपकी आज्ञा ही सर्वोपरि प्रमाण है।" "जिसने आपकी आज्ञा को पहचान लिया, उसने आपके मौन को पहचान लिया। जिसने आपके मौन को पहचान लिया, उसने आपको पहचान लिया। जिसने आपको पहचान लिया, वह दुर्गति से बच गया। जिसने आपकी आज्ञा को नहीं पहचाना, उसने आपके मौन को नहीं पहचाना। जिसने आपके मौन को नहीं पहचाना, उसने आपको नहीं पहचाना । जिसने आपको नहीं पहचाना, वह दुर्गति से नहीं बचता। कुछ लोग आपकी आज्ञा के बाहर भी धर्म कहते हैं और आपकी आज्ञा में भी पाप कहते हैं। वे दोनों ओर से डूब रहे हैं। आपका धर्म आपकी आज्ञा में है। आपकी आज्ञा के बाहर आपका धर्म नहीं है। जो जिन-धर्म को जिन-आज्ञा के बाहर बतलाते हैं, वे मूढ़ हैं। आप अवसर देखकर बोले और अवसर देखकर मौन रहे। जिस कार्य में आपकी आज्ञा नहीं है; उस कार्य में धर्म नहीं है।" १. वीर सुनो मोरी वीनती : १.६-७. अध्येन अठाबीसमां उत्तराध्येन में, मोक्ष मार्ग कह्या च्यार। ग्यान दर्शन चरित्र में तप बिना नहिं श्रद्धं धर्म लिगार॥ देव अरहंत निग्रंथ गुरु मांहरे, केवली ए भाषित धर्म। ए तीनई तत्व सेंठाकर झालीया, और छोड़ दिया सहु भन॥ २. व्रताव्रतः १२-३६-४३ : जिण ओलख लीधी आपरी आगन्यां, जिण ओलख लीधी आपरी मून हो। तिण आप ने पिण ओलखे लीया, तिणरी टलगी माठी माठी जून हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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