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प्रतिध्वनि : ५६
१. (क) जो कार्य करना धर्म है, उसे करवाना और उसका अनुमोदन भी धर्म है।
(ख) जो कार्य करवाना धर्म है, उसे करना और उसका अनुमोदन भी धर्म है।
(ग) जिसका अनुमोदन धर्म है उसे करना और कराना भी धर्म है।
२. (क) जो कार्य करना धर्म नहीं, उसे करवाना और उसका अनुमोदन भी धर्म नहीं।
(ख) जो कार्य करवाना धर्म नहीं, उसे करना और उसका अनुमोदन भी धर्म नहीं।
(ग) जिसका अनुमोदन धर्म नहीं, उसे करना और कराना भी धर्म नहीं।
हिंसा करना पाप है, करवाना पाप है और उसका अनुमोदन भी पाप है।' अहिंसा का पालन करना धर्म है, करवाना धर्म है और उसके पालन का अनुमोदन करना भी धर्म है।
कुछ लोग कहते हैं, मरते जीवों को बचाना धर्म है। आचार्य भिक्षु ने कहा-धर्म का सम्बन्ध जीवन या मृत्यु से नहीं है। उसका सम्बन्ध संयम से है। एक व्यक्ति स्वयं मरने से बचा, दूसरे ने उसके जीवित रहने में सहयोग दिया और तीसरा उसके जीवित रहने से हर्षित हुआ, इन तीनों में धर्मी कौन-सा होगा? जो जीवित रहा उसका भी अव्रत नहीं घटा और सहयोग करने वाले का भी व्रत नहीं बढ़ा, फिर ये धर्मी कैसे होंगे? जीना, जिलाना और जीने का अनुमोदन करना-ये तीनों समान हैं। १. अणुकम्पा, ४, दू. २ :
मार्या मरायां भलो जाणीयां, तीनूंई करणां पाप।
देखण वाला में जे कहे, ते खोटा कुगुर सराप॥ २. वही, ५. २२-२५ :
एक पोते बच्यो मरवा थकी दूजे कीधो हो तिणरे जीवण रो उपाय। तीजो पिण हरष्यो उण जीवीयां, यां तीनां में हो कुण सुध गति जाय॥ कुसले रह्यो तिणरे इविरत घटी नहीं, तो दूजा में हो तुमे जाणजो एम। भेले जाणे तिणरे विरत न नीपनी, ए तीनूंई ते सुध गति जासी केम। जीवीयां जीवायां भलो जीणीयां तीनूंई हो करण सरपा जाण। कोई चतुर होसी ते परखसी, अण समझ्या हो करसी ताणा ताण॥
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