SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ : भिक्षु विचार दर्शन हूं-' आचार्य भिक्षु ने कहा। 'ओह! अनर्थ हो गया'-उन्होंने कहा। उन्होंने पूछा-'सो कैसे? वे बोले-'तुम्हारा मुंह देखने वाला नरक में जाता है।' 'तुम्हारा मुंह देखने वाला तो स्वर्ग में जाता होगा? आचार्य भिक्षु ने पूछा। उन्होंने स्वीकृति-सूचक सिर हिला दिया। आचार्य भिक्षु ने कहा-'तुम्हारे लिए अच्छा नहीं हुआ, मेरे लिए तो अच्छा ही हुआ है-मुझे तो स्वर्ग ही मिलेगा, क्योंकि तुम्हारा मुंह देखा है। .. उदयपुर में एक व्यक्ति आया और कहने लगा-मुझसे तत्त्व-चर्चा का कोई प्रश्न पूछो। आचार्य भिक्षु ने नहीं पूछा। बार-बार अनुरोध किया, तब पूछा-तुम समनस्क हो या अमनस्क? उसने कहा-समनस्क। आचार्य ने पूछा-कैसे? उसने कहा-नहीं, मैं अमनस्क हूं। फिर पूछा-किस न्याय से? वह बोला-नहीं, मैं दोनों ही नहीं हूं। आपने कहा-वह फिर किस न्याय से? वह बोला-नहीं, दोनों ही हूं। फिर पूछा-वह किस न्याय से? वह इस न्याय-न्याय से रुष्ट होकर छाती में धूंसा मार चलता बना। तेरापंथ की शन्तिपूर्ण नीति आचार्य भिक्षु की तितिक्षा की ही परिणति है। इन दो शताब्दियों में तेरापंथ की उत्तेजनापूर्ण और निम्नस्तर की आलोचना कुछ सम्प्रदाय के व्यक्तियों ने की, प्रचुर मात्रा में विरोधी साहित्य भी निकला। पर इन पूरे दो सौ वर्षों में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है कि विरोध का प्रत्युत्तर उत्तेजनापूर्ण ढंग से दिया गया हो या विरोधपूर्ण दो पंक्तियां ही प्रकाशित की हों। . शान्तिपूर्ण नीति से क्रियात्मक शक्ति का बहुत ही अर्जन हुआ है, इसका श्रेय आचार्य भिक्षु की ध्येय-निष्ठा को है। ___ संसार से आचार्य भिक्षु की सच्ची विरक्ति थी। उनकी दृष्टि में वह बुद्धि असार है, जो धर्म में लीन नहीं होती। उन्होंने जो धर्म-चर्चा की, वह मोक्ष को केन्द्र-बिन्दु मानकर की। समाज की भूमिका पर खड़े व्यक्ति को उसमें कहीं-कहीं अतिवाद या वैराग्य के अन्तिम छोर को पकड़ने जैसा लगता है। यद्यपि समाज के पारस्परिक सहयोग का लोप करना उनका उद्देश्य नहीं था, फिर भी ‘आपातदर्शन' में पाठक को ऐसा अनुभव होता है कि वे सामाजिक सहयोग का निरसन कर रहे हैं। गहराई में जाने पर १. भिक्खु दृष्टान्त, १५, पृ. ६ २. वही, ४७, पृ. २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy