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प्रतिध्वनि : ४६
है। उस महाभाष्य की कुछ पंक्तियां आज राजनीति की भूमिका में प्रत्यावर्तन पा रही हैं। समाज भी उन्हें मान्यता दे रहा है। वह शाश्वत-सत्य, जिसकी भगवान् महावीर ने अनुभूति की और जिसे आचार्य भिक्षु ने अभिव्यक्ति दी, आज युग की भाषा में बोल रहा है।
उस समय बड़े जीवों की रक्षा के लिए छोटे जीवों के वध को पण्य माना जाता था। अहिंसा के क्षेत्र में भी बल-प्रयोग मान्य था। पुण्य के लिए धर्म करना भी सम्मत था। अशुद्ध साधन के द्वारा भी शुद्ध साध्य की प्राप्ति मानी जाती थी और दान मात्र को पुण्य माना जाता था। ___आचार्य भिक्षु ने इन मान्यताओं की आलोचना की। बड़े-छोटे के प्रश्न पर उन्होंने सब जीवों की समानता की बात याद दिलाई। बल-प्रयोग के स्थान पर हृदय-परिवर्तन की पुष्टि की। उन्होंने कहा-'धर्म करने पर पुण्य स्वयं होता है, पर पुण्य करने के लिए धर्म करना लक्ष्य से दूर जाना है। शुद्ध साध्य की प्राप्ति शुद्ध साधनों के द्वारा ही हो सकती है और दान का अधिकारी केवल संयमी है, असंयमी नहीं।' उस समय इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई, यह बताने से पूर्व यह बताना आवश्यक है कि ये विचार युग की भाषा में कैसे प्रतिध्वनित हो रहे हैं। ___ 'सब मनुष्य समान हैं' यह इस युग का प्रमुख घोष है। बड़ों के लिए छोटों के बलिदान की बात आज निष्प्राण हो चुकी है।
समझा-बुझाकर बुराई को दूर किया जाए, इस हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त पर मनोविज्ञान की छाप लग चुकी है। आज अपराधियों के लिए भी दण्ड-व्यवस्था की अपेक्षा सुधार की व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाता है। आज के सभ्य राष्ट्र फांसी की सजा को मिटा रहे हैं और अपराध-सुधार के मनोवैज्ञानिक उपायों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त पर लगभग उतना ही बल दिया, जितना कि आचार्य भिक्षु ने दिया था। इन दोनों धाराओं में अद्भुत सामंजस्य है।
_ 'यह तो कहीं नहीं लिखा है कि अहिंसावादी किसी आदमी को मार डाले, उसका रास्ता तो बिल्कुल सीधा है। एक को बचाने के लिए वह दूसरों की हत्या नहीं कर सकता। उसका पुरुषार्थ एवं कर्त्तव्य तो सिर्फ विनम्रता के साथ समझाने-बुझाने में है।'' १. हिन्द स्वराज्य, पृ. ७५-७६
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