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________________ २. प्रतिध्वनि १. धर्म - क्रान्ति के बीज' यह उन्नीसवीं सदी के प्रथम चरण की घटना है । राजपूताना की मरुस्थली में एक धर्म - क्रान्ति हुई । भारतीय परम्परा में धर्म राजनीति से भिन्न रहा, इसलिए राज-व्यवस्था पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ । समाज व्यवस्था भी धर्म द्वारा परिचालितं नहीं थी, इसलिए उस पर भी उसका प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा । किन्तु समाज में रहने वाले उससे सर्वथा अछूते कैसे रह सकते थे? परम्परा के पोषक इसको सहन नहीं कर सके। उन्होंने आचार्य भिक्षु को विद्रोही घोषित कर दिया । इस धर्म - क्रान्ति का निकट सम्बन्ध जैन - परम्परा से था । विरोध की चिनगारी वहीं सुलगी । आचार्य भिक्षु एवं उनके नवजात तेरापंथ पर तीव्र प्रहार होने लगे । प्रहार करना आत्मसंयम की कमी का प्रतीक है । अप्रिय परिस्थिति बनने पर ही व्यक्ति के संयम का मूल्यांकन होता है। आचार्य भिक्षु जिस परम्परा से मुक्त हुए, उसके लिए यह अप्रिय घटना थी और उनका उसके प्रति प्रहार करना भी अस्वाभाविक नहीं था । वह वैसे ही हुआ । पर वह एक अमिट लौ थी। हवा के झोंके उसे बुझा नहीं सके। उसे जिन - वाणी का स्नेह और संयम की सुरक्षा प्राप्त थी । प्रतिरोध के उपरान्त भी वह प्रदीप्त होती गई। उसके आलोक में लोगों को 'तेरापंथ' की झांकी मिली। तेरापंथ और आचार्य भिक्षु आज भी भिन्न नहीं हैं, किन्तु उस समय तो आचार्य भिक्षु ही तेरापंथ और तेरापंथ ही आचार्य भिक्षु थे । तेरापंथ एक विस्फोट है। महावीर वाणी के कुछ बीज तेरापंथ की भूमिका में प्रस्फुटित हुए, वैसे सम्भवतः पहले नहीं हुए। तेरापंथ महावीर की अहिंसा का महाभाष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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