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________________ व्यक्तित्व की झांकी : ४७ इसलिए मैं उन्हें अपने साथ नहीं रख सकता। तुम्हारी क्या इच्छा है, मेरे साथ रहना चाहते हो या अपने पिता के साथ? आचार्य भिक्षु ने कहा। ____ भारीमालजी ने दृढ़तापूर्वक आचार्य भिक्षु के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की-'मुझे आपका विश्वास है। साधुत्व में मेरी आस्था है। मेरे चरण आपके चरण-चिह्नों का ही अनुगमन करेंगे। मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जा सकता। आचार्य भिक्षु ने कृष्णोजी के सामने वही बात दोहराई। उन्होंने कहा-'आप मुझे साथ नहीं रखेंगे तो मेरा पुत्र भी आपके साथ नहीं रह सकेगा।' ____ आचार्य भिक्षु ने कहा- 'यह रहा तुम्हारा पुत्र, मैं इसे कब रोकता हूं। तुम इसे ले जा सकते हो।' कृष्णोजी हठपूर्वक भारीमालजी को अपने साथ लेकर दूसरी जगह चले गये। भारीमालजी उस समय चौदह वर्ष के थे, पर उनकी आत्मा चौदह वर्ष की नहीं थी। उनके चिर-संचित संस्कार जाग उठे। पुत्र के सत्याग्रह के सामने पिता का आग्रह टूट गया। वे अपने पुत्र को साथ लिये आचार्य भिक्षु के निकट आये। नम्रभाव से कहा-'गुरुदेव! यह आप ही की संपत्ति है। इसे आप ही संभालें। यह दो दिन का भूखा-प्यासा है। इसे आप भोजन करायें, जल पिलायें। यह आपसे बिछुटकर जीवन-पर्यन्त अनशन करने पर तुला हुआ है। यह मेरे साथ नहीं रहना चाहता।' ___फल में जो होता है, वह सारा का सारा बीज में होता है। बीज आकार में ही छोटा होता है, प्रकार में नहीं। तेरापंथ के विकास का बीज आचार्य भिक्षु का जीवन था। उनके जीवन में समस्त-पद की वह सफलता है, जिसमें अनेक विभक्तियां लीन हों। उनके जीवन में सिन्धु की वह गहराई है, जिसमें असंख्य सरिताएं समाहित हो सकती हैं। उनके जीवन में क्षमा, बुद्धि, परीक्षा आदि ऐसे विशेष मनोभावों का संगम शा. जो सहज ही एक धर्म-क्रान्ति की भूमि का निर्माण कर सका। १. भिक्खु दृष्टान्त, २०२, पृ. ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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