________________
४४ : भिक्षु विचार दर्शन
एक व्यक्ति ने कहा-'स्वामीजी! इधर आप व्याख्यान देते जा रहे हैं और उधर सामने बैठे हुए कुछ लोग आपकी निन्दा करते जा रहे हैं।' आपने कहा-'यह आदत की लाचारी है। झालर बजने पर कुत्ता भौंकता है। वह यह नहीं समझता है कि यह विवाह के अवसर पर बज रही है या किसी के मर जाने पर। निन्दा करने वाला यह नहीं देखता कि यह ज्ञान की बात की जा रही है या कुछ और। उसका स्वभाव निन्दा करने का है सो कर लेता है।
तत्त्व की चर्चा में लम्बाई होती है। काव्य की चर्चा लम्बी नहीं होती। उसकी समाप्ति वह एक ही वाक्य कर देता है जिसमें चुभने की क्षमता हो। २१. विवाद का अन्त एक रस्सी को पकड़कर दो आदमी खींचते हैं--एक इधर और एक उधर । परिणाम क्या हाता है? रस्सी टूटती है। दोनों आदमी गिर जाते हैं। खिंचाव करने वाला अर्थात् गिरनेवाला। जो खिंचाव को मिटाता है वह अपने को गिरने से उबार लेता है।
दो साधुओं में खींचातानी हो गई। वे आचार्य भिक्षु के पास आये। एक ने कहा-'इसके पात्र में से इतनी दूर तक जल की बूंदें गिरती गईं।' दूसरे ने कहा-'नहीं, इतनी दूर तक नहीं गिरी ।' तीसरा कोई साथ में नहीं था। दोनों अपनी-अपनी बात पर डटे रहे। विवाद नहीं सुलझा। तब आचार्यवर ने कहा- 'तुम दोनों रस्सी लेकर जाओ और उस स्थान को मापकर वापस आ जाओ।' दोनों के मन की नाप हो गई। पहले ने कहा-'हो सकता है मेरे देखने में भूल रह गई हो।' दूसरे ने कहा-'हो सकता है मैं दूरी को ठीक-ठीक न पकड़ सका होऊं।' दोनों अपने-अपने आग्रह का प्रायश्चित्त कर गिरने से बच गये और शुद्ध हुए।
दो साधु एक विवाद को लेकर आये। एक ने कहा- 'गुरुदेव! यह रसलोलुप है।' दूसरा बोला- 'मैं नहीं हूं, रसलोलुपता इसमें है।' वाणी का यह विवाद कैसे निपटे? स्वामीजी के समझाने पर भी वे समझ नहीं सके।
१. भिक्खु दृष्टान्त १६, पृ. १० २. वही, १६७, पृ. ६७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org