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व्यक्तित्व की झांकी : ४३
बहिन-चारा, घास। भिक्षु-वह क्या देती है? बहिन-दूध।
भिक्षु-तब बहिन ! जैसा देती हो, वैसा कहां मिलता है? घास के बदले दूध मिलता है। ___अब वह रुक नहीं सकी। जल का पात्र उठा, सारा जल उसने साधुओं के पात्र में उड़ेल दिया। .... इस जगत् में अनेक कलाएं होती हैं। उसमें सबसे बड़ी कला है दूसरों के हृदय का स्पर्श करना। उस कला का मूल्य कैसे आंका जाए जो दूसरों के हृदय तक पहुंच ही नहीं पाती। २०. चमत्कार को नमस्कार दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती है। व्यक्ति नहीं पूजा जाता, शक्ति पूजी जाती है। पूर्णिमा के चांद की पूजा नहीं होती, दूज का चांद का पूजा जाता है। सीधी बात पर ध्यान नहीं जाता, वक्रोक्ति सहसा मन को खींच लेती है। कवित्व एक शक्ति है। वक्रोक्ति से बढ़कर और काव्य का क्या चमत्कार होगा? - आचार्य भिक्षु पीपाड़ में चौमासा कर रहे थे। वहां जग्गू गांधी उनके सम्पर्क में आया और उनका अनुयायी बनं गया। कुछ लोगों ने कहा-‘स्वामीजी! जग्गू गांधी आपका अनुयायी बना, इस बात से अमुक सम्प्रदाय वाले सभी लोगों को कष्ट हुआ है पर खेतसी लूणावत को तो बहुत ही कष्ट हुआ है। स्वामीजी बोले-'विदेश से मौत का समाचार आने पर चिन्ता सबको होती है, पर लम्बी कांचुली तो एक ही पहनती है।
आचार्य भिक्षु व्याख्यान देते। कुछ लोगों को वह बहुत ही अच्छा लगता और कुछ उसका विरोध करते। जिनका विरोध था, उन्होंने कहा-'भीखणजी व्याख्यान देते हैं तब रात एक पहर से बहुत अधिक चली जाती है। आचार्य भिक्षु ने कहा-'सुख की रात छोटी लगती है, दुःख की रात बड़ी। वैसे ही जिन्हें व्याख्यात सहन नहीं होता उन्हें रात अधिक बड़ी लगती है। १. भिक्खु दृष्टान्त, ३४ पृ. १६ २. वही, १७, पृ. १० ३. वही, १८, पृ. १०
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