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________________ ४० : भिक्षु विचार दर्शन आचार्य भिक्षु ने कहा - 'हाथ में कंपन होने के चार कारण होते हैं : १. कंपन वात २. क्रोध का आवेश ३. मैथुन का आवेश ४. चर्चा में पराजय ।' यह सुनकर मुनिजी ने कहा - 'साले का माथा काट डालूं ।' जहर को अमृत बनाते हुए आचार्य भिक्षु ने कहा - 'मुनिजी ! जगत् की सारी स्त्रियां मेरी बहन हैं। आपके स्त्री है तो मैं आपका भी साला हो सकता हूं, यदि आपके स्त्री नहीं है, आप मुझे साला बनाते हैं तो आपको झूठ बोलने का दोष लगता है । आपने दीक्षा ली तब सभी जीवों को मारने का त्याग किया था। आपकी दृष्टि में मैं साधु भले ही न होऊ, पर मनुष्य तो हूं, एक प्राणी तो हूं, दीक्षा लेते समय क्या मुझे मारने की छूट रखी थी ?" विरोध विनोद में बदल गया, जहर अमृत बन गया । लोग खिलखिला उठे। आवेश का दोष क्षमा की सरिता में बह गया । १७. सत्य का खोजी सत्य उसी के पल्ले पड़ता है जिसकी आत्मा पवित्र होती है । उसमें सत्य का ही आग्रह होता है, बाहरी उपकरणों का नहीं । एक दिन कुछ दिगम्बर जैन आचार्य भिक्षु के पास आये। उन्होंने कहा - 'महाराज, आपका आचार और अधिक चमक उठे, यदि आप वस्त्र न पहनें। आपने कहा- 'आप लोगों की भावना अच्छी है, पर मुझे श्वेताम्बर - आगमों में विश्वास है। उन्हीं के आधार पर मैंने घर छोड़ा है। उसके अनुसार मुनि कुछ वस्त्र रख सकता है, इसलिए मैं रखता हूं। यदि मुझे दिगम्बर-आगमों में विश्वास हो जाए तो मैं उसी समय वस्त्रों को फेंक दूं, नग्न हो जाऊं । २ सत्य का शोधक जितना निश्चल होता है, उतना ही नम्र । आचार्य भिक्षु ने जो नई व्याख्या की, उसके अन्त में लिख दिया कि मुझे यह सही लगता है, इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। किसी आचार्य और बहुश्रुत मुनि को १. भिक्खु दृष्टान्त, ६१, पृ. ३६-३६ २. वही, ३१, पृ. १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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