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________________ व्यक्तित्व की झांकी : ३६ नहीं हैं । तू जब भी कहेगी तभी चले जायेंगे। चातुर्मास में भी हम दुकान को छोड़ सकते हैं।' बहिन ने कहा- मुझे तुम्हारे जैसे ही कह गए हैं कि चौमासा शुरू होने पर दुकान नहीं छोड़ेंगे। इसलिए मैं दुकान में रहने की अनुमति नहीं दे सकती।' आचार्य भिक्षु उस दुकान को खाली कर दूसरी जगह चले गये । दिन में मड़ैया में रहते और रात को नीचे दुकान में व्याख्यान देते। लोग बहुत आते । 1 प्रकृति रूप बदलती रहती है। राजस्थान में वर्षा कम होती है, लेकिन इस वर्ष बरसात ने सीमा तोड़ दी । प्रकृति का प्रकोप बहुतों को सहना पड़ा। उस दुकान को भी सहना पड़ा, जिसमें आचार्य भिक्षु पहले ठहरे थे उसका शहतीर टूट गया। दुकान ढह गई। आचार्य भिक्षु ने यह सुना तो बोल उठे - 'दुकान से निकालने की प्रेरणा की, उन पर सहज क्रोध आ सकता है । परन्तु सही माने में उन्होंने हमारा उपकार किया । यदि आज हम उस दुकान में होते तो ?? बुराई करने वाला अवश्य ही बुरा होता है । पर बहुत अच्छा तो वह भी नहीं होता जो बुराई के भार से दब जाए । बुराई को पैरों से रौंदकर चलने वाला ही अपने मन को मजबूती से पकड़ सकता है । १६. क्षमा की सरिता में अमृत को जहर बनाने वाले कितने नहीं होते, किन्तु जहर को - अमृत बनाने वाले विरले ही होते हैं । जहर को अमृत वही बना सकता है जिसमें जहर न हो । एक सम्प्रदाय के साधु और आचार्य भिक्षु के बीच तत्त्व चर्चा हो रही थी । प्रसंगानुसार आपने बताया- 'धर्म के लिए हिंसा करने में दोष नहीं, यह अनार्य - वचन है, यह भगवान् महावीर ने कहा है ।' प्रतिवादी साधु ने अपने शिष्य से कहा - ' अपनी प्रति ला, यह पाठ शुद्ध नहीं है ।' शिष्य से प्रति मंगवाकर देखा तो वही पाठ मिला जो बताया गया था । उनके हाथ कांपने लगे। तब आचार्यवर ने कहा - 'मुनिजी ! हाथ क्यों कांप रहे हैं? जनता पाठ सुनने को उत्सुक है। आप सुनाइए न।' उसने पाठ नहीं सुनाया । १. भिक्खु दृष्टान्त, २, पृ. ३, ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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