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________________ व्यक्तित्व की झांकी : ३५ पा मिठास से नहीं। “आपके प्रयोग बहुत कड़वे हैं"-एक व्यक्ति ने कहा। आचार्य भिक्षु ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया-“गंभीर बात का रोग है। वह खुजलाने से कैसे मिटे? उसे मिटाने के लिए कुश का ही दाग देना होता है।" ___ आचार्य भिक्षु ने आचार शिथिलता और विचारों के धुंधलेपन पर गहरा प्रहार किया। उनकी भाषा कठोर है, नुकीली है और है चुभनेवाली; पर उसमें आत्मा की आवाज है, वेदना की अभिव्यक्ति है, अन्तर और भीतर की एकता है। १०. जागरण राजस्थान में ब्याह आदि कुछ प्रसंगों पर रात्रि-जागरण-रातिजोगे की प्रथा है। आचार्य भिक्षु ने रूपान्तर में इस प्रथा को निभा ही लिया। पाली की घटना है। रात को व्याख्यान दिया। पूरा हुआ, लोग चले गए। आप चौकी पर बैठे थे। दो आदमी खड़े-खड़े चर्चा करते रहे। आप उन्हें उत्तर देते रहे। अन्य साधु सो रहे थे। रात का पिछला प्रहर आया। आपने साधुओं को जगाया और कहा-'प्रतिक्रमण करो।' साधुओं ने पूछा-'आपकी नींद कब खुली? आपने कहा-'कोई सोया भी तो हो?२ __सोने के लिए जागने वाले बहुत होते हैं, पर जागरण के लिए जागने-वाले विरले ही होते हैं। ११. आचार-निष्ठा संसार में सब एकरूप नहीं होते। कुछ लेने का होता है, कुछ छोड़ने का। जानने का सब होता है। जो छोड़ने का हो उसी को छोड़ा जाए, शेष को नहीं। जीवन की सफलता का यह एक मन्त्र है। __ एक बहन आयी और आचार्य भिक्षु को भिक्षा लेने की प्रार्थना कर चली गयी। यह काम कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन आचार्य भिक्षु भिक्षा लेने उसके घर गए। आपने पूछा-'तू भिक्षा देने के बाद हाथ ठंडे जल से धोएगी या गर्म जल से? १. भिक्खु दृष्टान्त, ६६, पृ. २८ २. वही, ५३ पृ. २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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