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________________ ३४ : भिक्षु विचार दर्शन को समझाया । बहुत चर्चा के बाद उनकी अन्तरात्मा बोल उठी- 'मैंने सिंह का सपना देखा, जब यह मेरे गर्भ में था । यह राजा होगा। मैं इसे मुनि होने की आज्ञा कैसे दे सकती हूं? आचार्य ने कहा- 'मुनि राजा से बहुत बड़ा होता है । तेरा पुत्र मुनि - सिंह बने, इसमें तुझे क्या आपत्ति है? आचार्य की बात दीपांबाई के गले उतर गई और भीखणजी रुघनाथजी के शिष्य बन गए । ८. विश्वास विफल नहीं होता राजनगर मेवाड़ का प्रसिद्ध कस्बा है । उसकी प्रसिद्धि का कारण 'राजसमंद' है। यह बांध बहुत बड़ा नहीं है तो बहुत छोटा भी नहीं है। इसकी अपनी विशेषता है पाल । दुर्ग जैसे अनेक प्राकारों से घिरा होता है वैसे ही उस बांध का जल अनेक सेतुओं से घिरा हुआ है । 'नौ-चौकियां' वास्तु-कला का निदर्शन है । जल की किल्लोलें भीतों से टकराती हैं वैसे ही दर्शक के मन से प्रमोद टकराने लग जाता है । राजनगर सन्त भीखणजी का बोधि-क्षेत्र है । यहां उन्हें नया आलोक मिला और आलोकमय पथ पर चलने का क्षमता मिली। " राजनगर के श्रावकों ने विद्रोह किया । वे मुनियों को वन्दना नहीं करते। उन्हें समझाने के लिए तुम जाओ!" रुघनाथजी ने सन्त भीखणजी को आदेश दिया। वे अपने चार सहयोगी मुनियों के साथ राजनगर की ओर चले । चातुर्मास प्रारम्भ हुआ । सन्त भीखणजी ने श्रावकों को सुना । श्रावक उनकी श्रद्धा, बुद्धि और वैराग्य पर विश्वास करते थे। इसलिए उन्होंने जो कहा उस पर तर्क को आगे नहीं बढ़ाया। विश्वास विफल नहीं होता । श्रावकों की बात सन्त भीखणजी ने सिर पर ओढ़ ली थी। उन्होंने मन ही मन सोचा - क्या हम लोग आचार-शिथिल नहीं हैं? कलिकाल की दुहाई देकर क्या हम महाव्रतों की यत्र-तत्र अवहेलना नहीं करते? उनको कंपन- ज्वर हो गया और उस दशा में उनके संकल्प ने नया मार्ग ढूंढ़ लिया । श्रावकों का विश्वास विफल नहीं हुआ । ६. आलोचना कड़वी दवा भी लोग पीते हैं और वैद्य पिलाते हैं। दवा कड़वी है, यह दोष नहीं है। दवा की कसौटी रोग मिटाने की क्षमता से की जाती है, कड़वापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003095
Book TitleBhikshu Vichar Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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