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३२ : भिक्षु विचार दर्शन प्रतीक्षा का भाव भर गया, पर चोरी के धन को लौटाने कोई नहीं आया। तब 'नाम प्रकट करो', 'नाम प्रकट करो', की आवाजें आने लगीं। कुम्हार का देवता बोल उठा-“गहना ‘मजने' ने चुराया है, 'मजने' ने चुराया है, 'मजने' ने चुराया है।" वहां एक अतिथि बैठा था। उसने अपने डंडे को आकाश में घुमाते हुए कहा-'मजना मेरे बकरे का नाम है, उस पर झूठा आरोप लगाता है! इस बार उसका नाम लिया तो फिर लोग कुछ और ही देखेंगे।' उसकी ठग-विद्या की कलई खुल गई। लोग उसे कोसने लगे। भीखणजी ने कहा-'इसे कोसने की क्या जरूरत है! मूर्ख तुम हो। चोरी आंखवालों के घर हुई और उसका पता लगाने के लिए तुम अन्धे को बुलाते हो, गहना कैसे आएगा?
ठग-विद्या का मर्मोद्घाटन करना भीखणजी का जीवन-मंत्र था। इसका आदि और अन्त नहीं है। जीवन का मंत्र सदा जीवन के साथ चलता
है।
५. अदम्य उत्साह धर्म का क्षेत्र ठग-विद्या से अछूता नहीं था। बहुत सारे लोग साधु बनकर भी साधुता को नहीं निभाते थे। वे कलिकाल का नाम ले, लोगों को भरमाते थे। पांचवां आरा है, अभी पूरा साधुपन पाला नहीं जा सकता, इसकी ओट में बहुत-सी बुराइयां पलती थीं। आचार्य भिक्षु ने कहा- 'उधार साहूकार भी लेता है और दिवालिया भी लेता है। खत दोनों लिखते हैं-महाजन जब मांगेगा तभी उसका रुपया लाटा दिया जाएगा। परन्तु साहूकार और दिवालिये की पहचान मांगने पर होती है। जो साहूकार होता है वह ब्याज सहित मूल धन दे देता है। जो दिवालिया होता है वह मूल पूंजी भी नहीं देता। भगवान् ने जो कहा, उसका पालन करने वाला साधु है और पांचवें आरे का नाम लेकर भगवान् की वाणी का उल्लंघन करने वाला असाधु है। ____आचार्य भिक्षु के गुरु आचार्य रुघनाथजी थे। उन्होंने कहा- 'भीखणजी! अभी पांचवां आरा है, इस काल में कोई भी दो घड़ी का साधुपन पाल ले तो वह सर्वज्ञ हो जाए। आचार्य भिक्षु ने कहा- 'यदि दो घड़ी में ही सर्वज्ञता
१. भिक्खु दृष्टान्त, १०६, पृ. ४५ २. वही, ७६, पृ. ३१-३२
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